प्रयागराज, उत्तर प्रदेश: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली हिंसा मामले में आरोपी रेहान की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की सिंगल बेंच ने 9 पेज के फैसले में विवादित नारे “गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सिर तन से जुदा” को भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा बताया। कोर्ट ने इसे सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसावा और कानून के शासन को चुनौती देने वाला करार दिया।
नारा देश की अखंडता पर हमला: कोर्ट
आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि यह नारा न केवल भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दंडनीय है, बल्कि यह लोगों को हिंसा और विद्रोह के लिए भड़काता है। जस्टिस देशवाल ने पैराग्राफ 12 में लिखा, “यह नारा देश की संप्रभुता और अखंडता को सीधी चुनौती है।” कोर्ट ने इसे इस्लाम के मूल सिद्धांतों के भी विपरीत बताया।
क्या था मामला?
बरेली में “आई लव मोहम्मद” जुलूस के दौरान रेहान पर यह नारा लगाने का आरोप है। मौलाना तौकीर रजा के करीबी माने जाने वाले रेहान के खिलाफ कोतवाली पुलिस ने FIR दर्ज की थी। आरोपी ने जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था।
सुनवाई में रेहान के वकील अखिलेश कुमार द्विवेदी ने जमानत की गुहार लगाई, जबकि अतिरिक्त महाधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और अपर शासकीय अधिवक्ता नितेश श्रीवास्तव ने कड़ा विरोध किया। कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद पाया कि आरोप गंभीर हैं और जमानत देने से गलत संदेश जाएगा।
जमानत खारिज, जेल में ही रहेंगे रेहान
हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद रेहान की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट का मानना है कि ऐसे नारे समाज में विभाजन और हिंसा को बढ़ावा देते हैं। यह फैसला बरेली हिंसा जैसे मामलों में सख्त रुख अपनाने का संकेत देता है।
बरेली में जुलूस के दौरान हुए विवाद और हिंसा के बाद कई लोगों पर मुकदमे दर्ज हुए थे। इस फैसले से उन मामलों की जांच और सुनवाई पर भी असर पड़ सकता है। रेहान अब जेल में ही रहेंगे और आगे की कानूनी लड़ाई लड़नी होगी।

