उत्तराखंड हाई कोर्ट की सरकार को फटकार: 30 जून तक स्थानांतरण पात्रता सूची जारी करें!

Uttarakhand News: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने स्थानांतरण अधिनियम की अनदेखी पर सरकार को फटकार लगाई। 30 जून 2025 तक पात्रता सूची प्रकाशित करने का आदेश दिया गया। महिमानंद जोशी की याचिका पर कोर्ट ने गैरकानूनी तबादले को गंभीरता से लिया।

Samvadika Desk
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उत्तराखंड हाई कोर्ट
Highlights
  • उत्तराखंड हाई कोर्ट ने स्थानांतरण नियमों की अनदेखी पर सरकार को लगाई फटकार!
  • 30 जून तक पात्रता सूची जारी करने का हाई कोर्ट का सख्त अल्टीमेटम!
  • 14 जुलाई को अगली सुनवाई, उत्तराखंड सरकार पर पारदर्शिता का दबाव!

नैनीताल, उत्तराखंड: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को स्थानांतरण अधिनियम के पालन में लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने सरकार को 30 जून 2025 तक पात्रता सूची और रिक्त पदों की जानकारी विभागीय वेबसाइट पर प्रकाशित करने का सख्त निर्देश दिया है। यह आदेश हरिद्वार के जिला अभिहित अधिकारी महिमानंद जोशी की याचिका पर आया, जिन्होंने अपने स्थानांतरण को गैरकानूनी बताते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने अभ्यर्थियों को 7 जुलाई तक विकल्प देने की छूट दी, और अगली सुनवाई 14 जुलाई को तय की है।

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स्थानांतरण में नियमों की अनदेखी

जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, महिमानंद जोशी ने अपनी याचिका में दावा किया कि 10 जून 2025 को उनका हरिद्वार से नैनीताल स्थानांतरण गैरकानूनी था। 58 साल 4 महीने की उम्र और वरिष्ठ नागरिक होने के बावजूद, उनके 20 महीने की सेवा बाकी होने पर स्थानांतरण अधिनियम की धारा 14 का उल्लंघन हुआ। जोशी ने बताया कि उनकी 60% सेवा दुर्गम क्षेत्रों में, जिसमें 6 साल टिहरी में बिताए, पूरी हो चुकी है। फिर भी, केवल 2 साल बाद हरिद्वार से उनका तबादला कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि स्थानांतरण को “जनहित” में बताया गया, जबकि अधिनियम में इसका कोई जिक्र नहीं है। कोर्ट ने पाया कि स्थानांतरण प्रक्रिया में पात्रता सूची तैयार करने और विकल्प माँगने की अनिवार्य प्रक्रिया की अनदेखी की गई।

कोर्ट का सख्त आदेश

मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सरकार को फटकार लगाते हुए स्पष्ट निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि रिक्त पदों की संख्या कम होने के कारण पात्रता सूची तैयार करने की प्रक्रिया को जल्द पूरा किया जा सकता है। 30 जून तक वेबसाइट पर सूची प्रकाशित करने और 7 जुलाई तक अभ्यर्थियों को विकल्प देने का समय दिया गया। स्थानांतरण आदेश 11 जुलाई तक जारी करने होंगे। कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 14 जुलाई को अगली सुनवाई तय की, ताकि अनुपालन की जाँच हो सके।

प्रशासनिक पारदर्शिता पर जोर

यह मामला सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। स्थानांतरण जैसे संवेदनशील मुद्दों में नियमों की अनदेखी न केवल कर्मचारियों के अधिकारों का हनन करती है, बल्कि प्रशासन पर सवाल भी उठाती है। कोर्ट का यह कदम कर्मचारियों के हितों की रक्षा और नियमों के पालन को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

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एक नई शुरुआत की उम्मीद

उत्तराखंड हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल महिमानंद जोशी के लिए, बल्कि उन सभी कर्मचारियों के लिए उम्मीद की किरण है, जो स्थानांतरण में अनियमितताओं का शिकार होते हैं। क्या यह आदेश सरकारी विभागों में पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया की शुरुआत करेगा? क्या सरकार समय पर कोर्ट के निर्देशों का पालन कर पाएगी? यह मामला प्रशासनिक सुधारों की जरूरत को रेखांकित करता है, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही न दोहराई जाए।

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