बूंदी, राजस्थान: राजस्थान के बूंदी जिले में प्रशासन ने एक उल्लेखनीय कदम उठाते हुए 14 नाबालिग बच्चों के विवाह को रोक दिया, जो 30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के मौके पर होने वाले थे। यह कार्रवाई बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee, CWC) और जिला प्रशासन के संयुक्त प्रयासों का नतीजा है। बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ यह कदम न केवल बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि समाज में जागरूकता और कानूनी सख्ती की जरूरत को भी रेखांकित करता है। इस घटना ने बूंदी को बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक मिसाल बना दिया है, लेकिन यह सवाल भी उठाता है कि क्या यह सफलता दीर्घकालिक बदलाव ला पाएगी?
अक्षय तृतीया और बाल विवाह की परंपरा
अक्षय तृतीया, जिसे स्थानीय भाषा में आखा तीज (Akha Teej) भी कहा जाता है, राजस्थान में एक शुभ दिन माना जाता है। इस दिन सैकड़ों शादियाँ होती हैं, लेकिन बूंदी और कोटा जैसे जिलों में यह अवसर अक्सर बाल विवाह के लिए चुना जाता है। परंपराओं और सामाजिक दबावों के चलते कई परिवार नाबालिग बच्चों की शादी कर देते हैं, जो न केवल अवैध है, बल्कि बच्चों के शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक विकास को भी प्रभावित करता है। यूनिसेफ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 15-19 आयु वर्ग की 23% लड़कियाँ बाल विवाह का शिकार होती हैं, और राजस्थान इस मामले में उच्च जोखिम वाले राज्यों में शामिल है। बूंदी में इस बार प्रशासन की सतर्कता ने इस प्रथा पर बड़ा प्रहार किया।
प्रशासन की त्वरित और समन्वित कार्रवाई
आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, बूंदी की बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष सीमा पोद्दार ने बताया कि उन्हें खुफिया सूत्रों से जानकारी मिली थी कि इंद्रगढ़ और हिंडोली तहसीलों में अक्षय तृतीया पर 20 से अधिक बाल विवाह की योजना थी। जाँच के बाद 14 मामले सत्यापित हुए। इसके बाद, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Additional Chief Judicial Magistrate, ACJM) की अदालत से निषेधाज्ञा (Injunction Order) प्राप्त की गई, जो बाल विवाह को अवैध और गैर-कानूनी घोषित करती है। इस आदेश के तहत, यदि कोई विवाह हो भी जाता है, तो उसे कानूनी मान्यता नहीं मिलेगी।
प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। CWC, महिला सशक्तिकरण विभाग (Women Empowerment Department), और पुलिस की संयुक्त टीमें गाँवों में पहुँचीं। परिवारों से बातचीत की गई, बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र (Birth Certificates) की जाँच हुई, और माता-पिता को बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act, PCMA) के प्रावधानों के बारे में बताया गया। कुछ परिवारों को समझाइश से मना लिया गया, जबकि कुछ को सख्त चेतावनी दी गई। यह कार्रवाई न केवल त्वरित थी, बल्कि समन्वित भी, जिसमें विभिन्न विभागों की भागीदारी ने इसे प्रभावी बनाया।
जागरूकता और निगरानी के अभिनव उपाय
बूंदी प्रशासन ने बाल विवाह को रोकने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियाँ भी अपनाई हैं। महिला सशक्तिकरण विभाग के उपनिदेशक भेरूप्रकाश नागर ने बताया कि प्रिंटिंग प्रेस मालिकों को शादी के निमंत्रण पत्रों में दूल्हा-दुल्हन की जन्मतिथि अनिवार्य रूप से छापने का निर्देश दिया गया है। यह नियम 2019 से लागू है और बाल विवाह की पहचान में मदद करता है। इसके अलावा, पुजारियों और पंडितों को विवाह से पहले आयु-संबंधी दस्तावेजों की जाँच करने का आदेश है, ताकि नाबालिगों की शादी न हो।
पन्नाधाय सुरक्षा एवं सम्मान केंद्र (Pannadhai Suraksha Avam Samman Kendra) गाँवों में सक्रिय है, जहाँ स्वयंसेवक और कर्मचारी संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखते हैं। ग्रामीणों को 1098 हेल्पलाइन और 24/7 कंट्रोल रूम के जरिए सूचना देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights, NCPCR) ने भी जिला प्रशासनों को अक्षय तृतीया के दौरान स्कूल ड्रॉपआउट बच्चों की निगरानी और जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं।
सामाजिक और कानूनी चुनौतियाँ
बाल विवाह को रोकना एक जटिल चुनौती है, क्योंकि यह सामाजिक मान्यताओं, आर्थिक तंगी, और अशिक्षा से जुड़ा है। बूंदी के कई ग्रामीण परिवार मानते हैं कि कम उम्र में शादी से लड़कियों की “सुरक्षा” सुनिश्चित होती है और परिवार का आर्थिक बोझ कम होता है। लेकिन यह प्रथा बच्चों के अधिकारों का हनन करती है। यूनिसेफ के अनुसार, बाल विवाह से किशोर गर्भावस्था (Teenage Pregnancy), मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality), और स्कूल छोड़ने की दर (Dropout Rate) में वृद्धि होती है।
कानूनी तौर पर, PCMA के तहत बाल विवाह कराने वालों को दो साल की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। लेकिन सामुदायिक समर्थन और गुप्त विवाहों के कारण शिकायतें कम होती हैं। बूंदी में कोर्ट की निषेधाज्ञा और प्रशासन की तत्परता ने इस बार सफलता दिलाई, लेकिन दीर्घकालिक बदलाव के लिए सामाजिक मानसिकता में बदलाव जरूरी है।
ताकतवर इरादे, अधूरी तैयारी: प्रशासन का मिला-जुला चेहरा
बूंदी की कार्रवाई से साफ है कि सतर्कता, समन्वय, और कानूनी हस्तक्षेप बाल विवाह को रोकने में प्रभावी हो सकते हैं। निषेधाज्ञा जैसे कानूनी उपाय और प्रिंटिंग प्रेस, पुजारियों, और स्वयंसेवकों को शामिल करना अभिनव रणनीतियाँ हैं। ये उपाय अन्य जिलों के लिए नजीर बन सकते हैं। लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक दबाव और परंपराओं का बोलबाला है, और कई परिवार चोरी-छिपे विवाह कराने की कोशिश करते हैं।
प्रशासन की जागरूकता पहल, जैसे नुक्कड़ नाटक और स्कूल कार्यशालाएँ, सकारात्मक हैं, लेकिन इनका प्रभाव तभी होगा जब वे निरंतर और गहरे स्तर पर हों। उदाहरण के लिए, 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान बूंदी में बाल विवाह बहुत कम दर्ज हुए, लेकिन यह सख्ती का नतीजा था, न कि सामाजिक बदलाव का। विशेषज्ञों का मानना है कि लड़कियों की शिक्षा (Girls’ Education), आर्थिक सशक्तिकरण, और सामुदायिक जागरूकता ही इस प्रथा को जड़ से खत्म कर सकती है।
सिर्फ एक केस नहीं: बड़े बदलाव की ज़रूरत
बूंदी की सफलता को दीर्घकालिक बनाने के लिए शिक्षा और रोजगार पर ध्यान देना होगा। NCPCR और NGO जैसे ‘Child Marriage Free India’ ने धार्मिक नेताओं और ग्राम पंचायतों को शामिल कर जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की है। मंदिरों और मस्जिदों में “बाल विवाह नहीं” के संदेश और पुजारी-मौलवियों की शपथ इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं। लेकिन ग्रामीण परिवारों को आर्थिक सहायता और लड़कियों के लिए स्कॉलरशिप जैसी योजनाएँ भी चाहिए।
केंद्र सरकार की ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ (Bal Vivah Mukt Bharat Abhiyan) और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी पहलें इस दिशा में सहायक हैं। लेकिन राजस्थान जैसे राज्यों में और संसाधन, प्रशिक्षित कर्मचारी, और सामुदायिक भागीदारी की जरूरत है। बूंदी की कार्रवाई दिखाती है कि स्थानीय स्तर पर सख्ती और जागरूकता से बदलाव संभव है, लेकिन इसे पूरे राज्य और देश में लागू करना एक बड़ी चुनौती है।
बाल विवाह के खिलाफ बढ़ता संकल्प
बूंदी में 14 बाल विवाह रोकना प्रशासन की सतर्कता और समन्वय का प्रतीक है। यह कार्रवाई बच्चों के अधिकारों की रक्षा करती है और समाज को संदेश देती है कि कानून का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं होगा। अक्षय तृतीया जैसे शुभ अवसरों को बाल विवाह जैसे अपराधों से मुक्त करने के लिए प्रशासन, NGO, और समुदाय को मिलकर काम करना होगा। बूंदी की यह सफलता एक उम्मीद की किरण है, लेकिन असली जीत तब होगी जब बाल विवाह पूरी तरह खत्म हो जाए और हर बच्चा अपने अधिकारों के साथ जी सके।