सहारनपुर, उत्तर प्रदेश: दीवाली से ठीक पहले देवबंद उलेमा और जमीयत दावातुल मुसलिमीन के संरक्षक मौलाना कारी इसहाक गोरा का एक बयान सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है। मौलाना ने मुस्लिम युवाओं को नसीहत देते हुए कहा कि दूसरे धर्मों की रस्मों में शामिल होना भाईचारा नहीं कहलाता और शरीयत इसकी इजाजत नहीं देती। इस बयान ने सामाजिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता पर नई बहस छेड़ दी है।
मौलाना का बयान: “भाईचारा दिखावा नहीं, असल में भलाई है”
मौलाना कारी इसहाक गोरा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर कहा कि मजहब के प्रति गंभीरता जरूरी है, क्योंकि यह इंसान को जीने का सही तरीका सिखाता है। उन्होंने कहा, “आजकल लोगों में यह गलत धारणा बन गई है कि दूसरे धर्मों की रस्मों में शामिल होने से भाईचारा बढ़ता है। यह सोच गलत है।” मौलाना ने जोर देकर कहा कि भाईचारा निभाने के लिए दूसरों की भलाई करना, उनका ख्याल रखना और उन्हें तकलीफ न देना ही काफी है। उन्होंने चेतावनी दी कि दिल में कुछ और रखकर दिखावा करना मुनाफिकत (पाखंड) है, जो शरीयत के खिलाफ है। मौलाना ने मुस्लिम युवाओं से अपने व्यवहार और आचरण में शरीयत का पालन करने की अपील की।
पहले भी विवादों में रहे मौलाना
यह पहली बार नहीं है जब मौलाना कारी इसहाक गोरा अपने बयानों को लेकर चर्चा में आए हैं। इससे पहले सितंबर 2025 में उन्होंने सहारनपुर के गुघाल मेले में मुस्लिमों के जाने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने खासतौर पर मुस्लिम महिलाओं को नसीहत दी थी कि इस मेले में जाना इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है। मौलाना ने कहा था कि मेले में पूरी रात बिताने से लोग सुबह की नमाज छोड़ देते हैं, जो उनके मजहब के खिलाफ है। इस बयान पर कई मुस्लिम महिलाओं ने नाराजगी जताई थी और इसे उनकी स्वतंत्रता पर रोक मानकर विरोध किया था।
सामाजिक सौहार्द पर सवाल
मौलाना का ताजा बयान दीवाली जैसे बड़े त्योहार से पहले आया है, जब देशभर में सांस्कृतिक और धार्मिक एकता को बढ़ावा देने की कोशिशें की जा रही हैं। उनके इस बयान ने सामाजिक सौहार्द और अंतर-धार्मिक सहभागिता पर सवाल खड़े किए हैं। कई लोग इसे धार्मिक कट्टरता के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ इसे मजहबी पहचान को संरक्षित करने की कोशिश मान रहे हैं। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “त्योहारों में शामिल होना भाईचारे का प्रतीक है। ऐसे बयान समाज में गलत संदेश देते हैं।” वहीं, मौलाना के समर्थकों का कहना है कि वे केवल अपनी धार्मिक शिक्षाओं का पालन करने की बात कह रहे हैं।
सोशल मीडिया पर बहस
मौलाना का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, और लोग दो खेमों में बंट गए हैं। कुछ यूजर्स ने उनके बयान का समर्थन करते हुए कहा कि धार्मिक पहचान को बनाए रखना जरूरी है, जबकि अन्य ने इसे सामाजिक एकता के खिलाफ बताया। एक यूजर ने लिखा, “दूसरे धर्मों के त्योहारों में शामिल होना प्यार और सम्मान का प्रतीक है। इसे गलत ठहराना ठीक नहीं।” वहीं, कुछ ने मौलाना के बयान को सही ठहराते हुए कहा कि शरीयत का पालन करना हर मुस्लिम की जिम्मेदारी है।
सामाजिक और धार्मिक संदेश
यह बयान ऐसे समय में आया है जब उत्तर प्रदेश में अयोध्या का दीपोत्सव और अन्य सांस्कृतिक आयोजन सामाजिक एकता को बढ़ावा दे रहे हैं। मौलाना का यह दृष्टिकोण धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक एकता की भावना पर सवाल उठाता है। यह देखना बाकी है कि इस बयान का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या यह धार्मिक समुदायों के बीच तनाव को बढ़ाएगा या फिर एक नई बहस को जन्म देगा।
मौलाना कारी इसहाक गोरा का यह बयान न केवल देवबंद, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। दीवाली जैसे त्योहार के मौके पर यह बयान सामाजिक सौहार्द और धार्मिक सहभागिता पर गहरी बहस छेड़ सकता है।

