पनवेल, नवी मुंबई: नवी मुंबई के पनवेल में एक ऐसी घटना ने सबके दिलों को झकझोर दिया, जो माता-पिता की मजबूरी और सामाजिक हालात पर सवाल उठाती है। तक्का परिसर में स्वप्नालय आश्रम के बाहर फुटपाथ पर एक बास्केट में दो दिन की नवजात बच्ची लावारिस मिली। बास्केट में दूध की बोतल, सेरेलैक, और कुछ कपड़ों के साथ एक चिट्ठी थी, जिसमें माता-पिता की बेबसी की दास्तान लिखी थी। यह चिट्ठी पढ़कर हर किसी की आँखें नम हो गईं। यह घटना 29 जून 2025 की रात की है, और पुलिस अब बच्ची के माता-पिता की तलाश में जुट गई है।
बास्केट में मासूम और चिट्ठी का दर्द
रात के सन्नाटे में बच्ची की रोने की आवाज सुनकर स्थानीय लोग दौड़े। बास्केट में लिपटी नवजात को देखकर वे स्तब्ध रह गए। बास्केट में रखी चिट्ठी में अंग्रेजी में लिखा था: “हमें बहुत दुख है कि हमें यह कदम उठाना पड़ रहा है। हमारे पास कोई और रास्ता नहीं था। हम इस बच्ची का आर्थिक और मानसिक रूप से पालन-पोषण नहीं कर सकते। कृपया इसे किसी से न जोड़ें और मामले को न बढ़ाएँ। हम नहीं चाहते कि उसे वही मुश्किलें झेलनी पड़े जो हम झेल रहे हैं। हम उसकी जिंदगी बचाने की गुहार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि एक दिन हम उसे वापस ले सकेंगे। हम उसके करीब हैं। हमें माफ करें।” यह चिट्ठी माता-पिता के दर्द और बेबसी की मार्मिक कहानी बयां करती है।
पुलिस और अस्पताल की कार्रवाई
खबरों के मुताबिक, स्थानीय लोगों ने तुरंत पनवेल शहर पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने बच्ची को अपने कब्जे में लेकर नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की हालत स्थिर है, और उसे आगे की जाँच के लिए अलीबाग भेजा जाएगा। पुलिस अब बच्ची के माता-पिता की तलाश में छानबीन कर रही है, लेकिन अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है। इस घटना ने स्थानीय लोगों में गहरी चिंता और सहानुभूति पैदा की है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
एक स्थानीय निवासी ने कहा, “यह सोचकर दिल काँप जाता है कि कोई माता-पिता अपनी नवजात बेटी को इस तरह छोड़ने को मजबूर हुए। यह समाज के लिए एक चेतावनी है कि हमें ऐसी परिस्थितियों को रोकने के लिए कुछ करना होगा।” लोग इस चिट्ठी को पढ़कर भावुक हो रहे हैं, और सोशल मीडिया पर यह घटना चर्चा का विषय बन गई है।
समाज के सामने एक बड़ा सवाल
यह घटना माता-पिता की बेबसी को उजागर करती है, लेकिन साथ ही समाज से कई सवाल पूछती है। क्या आर्थिक तंगी और सामाजिक दबाव माता-पिता को इतने कठोर फैसले लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं? क्या समाज और सरकार को ऐसी परिस्थितियों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए? यह मासूम बच्ची अब एक नए भविष्य की ओर बढ़ रही है, लेकिन उसकी कहानी हमें सामाजिक संवेदनशीलता और सहायता तंत्र को मजबूत करने की जरूरत याद दिलाती है।