अमरोहा, यूपी: अमरोहा की तंग गलियों से एक ऐसी कहानी उभरकर सामने आई है, जो प्यार के जज़्बे और समाज की चौखट को एक साथ चुनौती देती है। शबनम, एक 30 साल की महिला, जिसके पीछे दो टूटी शादियाँ और तीन बच्चों का बोझ था, ने अपने मोहल्ले के 18 साल के शिवा के साथ मंदिर में सात फेरे लिए। नाम बदलकर, शबनम बनी शिवानी, और अब वो सीना ठोककर कहती है, “ये मेरी मर्जी थी। मैं खुश हूँ। कोई बीच में न आए।”
ये कोई सिनेमा का सीन नहीं, बल्कि हकीकत की वो किताब है, जिसके पन्ने सैदनवाली गाँव की पंचायत से शुरू होकर मंदिर की सीढ़ियों तक पहुँचे। लेकिन इस कहानी में सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि तलाक, बच्चों को छोड़ने का फैसला और पुलिस की नज़र भी शामिल है। आइए, इस दास्तान को करीब से देखें।
पहली शादी: अलीगढ़ का टूटा सपना
शबनम की ज़िंदगी की पहली मंजिल अलीगढ़ में बनी, जहाँ उसने शादी के सपने संजोए। मगर ये सपने चंद दिनों में ही चूर-चूर हो गए। तलाक की स्याही सूखी भी नहीं थी कि वो दूसरी राह पर चल पड़ी। कारण क्या थे, ये कोई नहीं जानता—शायद शबनम भी नहीं। लेकिन ये पहला कदम था, जो उसे एक लंबी यात्रा पर ले गया।
दूसरी शादी: तौफीक और तीन बच्चे
अमरोहा के सैदनवाली गाँव में शबनम ने तौफीक से दूसरा निकाह किया। 8 साल तक ये रिश्ता चला, और इस दौरान तीन बच्चों ने उनके घर में किलकारियाँ भरीं। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन पिछले साल एक सड़क हादसे ने सब बदल दिया। तौफीक घायल हो गया, उसका शरीर जवाब देने लगा। शबनम की ज़िंदगी में खालीपन बढ़ने लगा, और यहीं से एक नया चेहरा उसकी दुनिया में दाखिल हुआ।
शिवा का आगमन: पड़ोसी से प्यार और शबनम बनी शिवानी तक का सफर
शिवा, 18 साल का लड़का, जो अभी 12वीं की किताबों में खोया था, शबनम का पड़ोसी था। कोई नहीं जानता कि पहली मुलाकात कब हुई, लेकिन 6-7 महीने तक दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला चला। फोन कॉल्स से लेकर चुपके-चुपके मिलना—ये सब उस प्यार की बुनियाद बना, जिसने शबनम को बड़ा फैसला लेने के लिए मजबूर किया। वो कहती है, “मैंने अपनी खुशी चुनी।” और शिवा का जवाब है, “हमें कोई परेशानी नहीं।”
पंचायत का फैसला: आज़ादी की मुहर
जब परिवार को इस रिश्ते की भनक लगी, तो हंगामा मच गया। सवाल उठे, बहस हुई, और आखिरकार पंचायत बैठी। गाँव के बुजुर्गों ने फैसला सुनाया—शबनम अपनी मर्जी से रहे। पिछले शुक्रवार को उसने तौफीक को तलाक दे दिया। बच्चों को उनके पिता के पास छोड़ा और बुधवार को मंदिर में शिवा के साथ सात फेरे लिए। हिंदू रीति से शादी के बाद उसने अपना नाम शिवानी रख लिया। पंचायत का ये फैसला एक मिसाल बन गया।
पुलिस की नज़र: कानून का साय
शबनम की तीसरी शादी सिर्फ प्यार की कहानी नहीं रही। उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून (2021) के तहत पुलिस इसकी जाँच कर रही है। शबनम ने हिंदू धर्म अपनाकर शादी की, और ये सवाल उठा कि क्या ये कानूनन सही है? हसनपुर सर्किल ऑफिसर दीप कुमार पंत ने कहा, “हम परिस्थितियों को देख रहे हैं।” मगर अभी तक कोई शिकायत नहीं आई। ये जाँच शबनम और शिवा की नई ज़िंदगी पर कितना असर डालेगी, ये वक्त बताएगा।
एक और कहानी: फर्रुखाबाद का सबक
शबनम की शादी से ठीक कुछ दिनों पहले, अप्रैल को फर्रुखाबाद में भी एक अनोखा वाकया हुआ। वहाँ वैष्णवी नाम की लड़की की माँ ने अपने दामाद भंवर सिंह के सामने उसकी शादी प्रेमी मनोज से करवा दी। भंवर चुपचाप देखता रहा, और वैष्णवी नई ससुराल चली गई। दोनों घटनाओं में एक बात साफ है—परिवार ने पुरानी परंपराओं को तोड़कर नई राह बनाई।
सोशल मीडिया की बहस और समाज का दोराहा: सही या गलत?
शबनम की तीसरी शादी ने लोगों को दो खेमों में बाँट दिया। कुछ इसे प्यार की जीत कहते हैं। शिवा के पिता दाताराम सिंह ने कहा, “हमें बस इतना चाहिए कि दोनों चैन से रहें।” मगर कुछ लोग सवाल उठाते हैं—तीन बच्चों को छोड़ना क्या सही था? क्या प्यार के नाम पर ज़िम्मेदारियाँ भुलाई जा सकती हैं?
वहीं सोशल मीडिया पर यूजर्स अलग अलग प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, एक यूजर ने लिखा, “तीसरी शादी—समाज कहाँ जा रहा है?” वहीं दूसरे यूजर ने सवाल उठाया, “प्यार अपनी जगह, लेकिन बच्चों का क्या होगा?” ये पोस्ट्स इस समय सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही हैं, जो इस खबर की गर्मी दिखाती हैं।
नई शुरुआत: शिवानी और शिवा की दुनिया
शबनम, जो अब शिवानी है, और शिवा अपनी नई ज़िंदगी में कदम रख चुके हैं। वो कहते हैं, “हमने साथ जीने-मरने की कसम खाई है।” उनके लिए समाज की बातें अब मायने नहीं रखतीं। मगर ये कहानी सिर्फ उनकी नहीं—ये हर उस शख्स की सोच को झकझोरती है, जो रिश्तों को पुराने ढांचे में देखता है। क्या ये प्यार का नया रूप है, या पुराने नियमों का अंत? जवाब ढूँढना अभी बाकी है।
“यह रिपोर्ट विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और उपलब्ध जानकारी पर आधारित है। विषय की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए पाठकों से अनुरोध है कि इसे व्यक्तिगत राय न बनाएं।”