नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 के बाद भी चुनावी प्रक्रिया और पारदर्शिता को लेकर विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच तनातनी जारी है। शनिवार, 21 जून 2025 को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि आयोग जानबूझकर चुनाव से जुड़े महत्वपूर्ण डेटा और दस्तावेज नष्ट करने की योजना बना रहा है। जवाब में, चुनाव आयोग ने मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा का हवाला देते हुए राहुल के दावों को खारिज किया और कहा कि वह कानून के दायरे में काम कर रहा है।
राहुल गांधी का EC पर तीखा हमला
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया के जरिए चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा, “वोटर लिस्ट मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में नहीं दी जा रही, सीसीटीवी फुटेज को कानून बदलकर छिपाया जा रहा है, और अब फोटो-वीडियो को एक साल की बजाय सिर्फ 45 दिन में नष्ट कर दिया जाएगा। जिससे जवाब माँगा जा रहा है, वही सबूत मिटा रहा है। यह ‘मैच फिक्सिंग’ है, और फिक्स्ड चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर है।” राहुल का इशारा था कि आयोग जानबूझकर चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को कमजोर कर रहा है।
चुनाव आयोग का जवाब: गोपनीयता जरूरी
चुनाव आयोग ने राहुल के आरोपों का मीडिया चैनल को जवाब देते हुए कहा कि मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग और सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक करना मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। आयोग के अधिकारियों ने बताया कि ऐसी माँगें भले ही जनहित में लगें, लेकिन इनका दुरुपयोग हो सकता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि फुटेज से यह पता लगाया जा सकता है कि किसने वोट दिया और किसने नहीं, जिससे कुछ लोग दबाव, भेदभाव या धमकी का शिकार हो सकते हैं। खासकर, कम वोट पाने वाली पार्टी फुटेज का इस्तेमाल चुनिंदा मतदाताओं को निशाना बनाने के लिए कर सकती है।
कानून और सुप्रीम कोर्ट का हवाला
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि वह 1950 और 1951 के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत काम करता है। सीसीटीवी फुटेज को सिर्फ आंतरिक प्रशासनिक जरूरतों और कानूनी प्रक्रियाओं के लिए 45 दिन तक रखा जाता है, क्योंकि यही अवधि चुनाव परिणाम के खिलाफ याचिका दायर करने की समयसीमा है। अगर याचिका दायर होती है, तो फुटेज को सुरक्षित रखकर कोर्ट को सौंपा जाता है। अन्यथा, दुरुपयोग और गलत जानकारी फैलने के डर से इसे नष्ट कर दिया जाता है।
नियमों में बदलाव
पिछले साल सरकार ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर नियमों में बदलाव किया था, जिसके तहत सीसीटीवी और वेबकास्ट फुटेज जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स को सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी गई। 30 मई 2025 को आयोग ने राज्यों को पत्र लिखकर बताया कि फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, सीसीटीवी, और वेबकास्टिंग जैसे तरीकों से चुनाव प्रक्रिया की रिकॉर्डिंग की जाती है, लेकिन यह सब आंतरिक और कानूनी उपयोग के लिए है।
पारदर्शिता या गोपनीयता?
राहुल गांधी के आरोपों और चुनाव आयोग के जवाब ने एक बार फिर पारदर्शिता बनाम गोपनीयता की बहस छेड़ दी है। जहाँ विपक्ष चुनावी प्रक्रिया में अधिक खुलापन चाहता है, वहीं आयोग का कहना है कि मतदाताओं की सुरक्षा और निष्पक्षता सर्वोपरि है। यह विवाद लोकतंत्र की पारदर्शिता और मतदाता अधिकारों पर गहरे सवाल उठा रहा है। अब सवाल यह है कि क्या आयोग और विपक्ष के बीच यह तनाव कोई नया मोड़ लेगा?