पटना, बिहार: केंद्र सरकार के देश में जाति जनगणना (Caste Census) कराने के फैसले ने बिहार की सियासत में नया रंग भर दिया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर इस निर्णय को सामाजिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया। साथ ही, उन्होंने केंद्र और उसकी सहयोगी पार्टियों पर बिहार की जाति जनगणना में रुकावटें डालने का आरोप लगाया। यह पत्र न केवल तेजस्वी की मांगों को सामने लाता है, बल्कि बिहार में सियासी तनाव को और बढ़ाने वाला है।
केंद्र का फैसला और बिहार में श्रेय की होड़
30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने कैबिनेट बैठक में राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित आँकड़े शामिल करने का फैसला लिया। इस घोषणा के बाद बिहार में सियासी दलों के बीच श्रेय लेने की होड़ मच गई। तेजस्वी यादव ने इस फैसले का श्रेय अपने पिता और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को दिया, जिन्होंने लंबे समय से जाति जनगणना की वकालत की है। तेजस्वी ने कहा कि बिहार ने देश में सबसे पहले जाति आधारित सर्वेक्षण कर एक मिसाल कायम की थी, और अब केंद्र का यह कदम उसी दिशा में आगे बढ़ने का संकेत है।
हालांकि, इस फैसले ने सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच बयानबाजी को हवा दी। तेजस्वी ने अपने पत्र में केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि जब बिहार ने जाति सर्वेक्षण शुरू किया, तब केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसे रोकने की कोशिश की। यह पत्र बिहार की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे रहा है, क्योंकि सभी दल इस मुद्दे को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
तेजस्वी का पत्र: आशा के साथ सवाल
तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में केंद्र के फैसले का स्वागत करते हुए इसे सामाजिक बदलाव का अवसर बताया। उन्होंने लिखा, “आदरणीय प्रधानमंत्री जी, आपकी सरकार का जाति जनगणना कराने का निर्णय नई आशा जगाता है। यह हमारे देश की समानता की यात्रा में एक परिवर्तनकारी क्षण (Transformative Moment) हो सकता है।” लेकिन उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि बीते वर्षों में केंद्र सरकार और एनडीए गठबंधन ने इस माँग को “विभाजनकारी” (Divisive) और “गैर-ज़रूरी” बताकर खारिज किया था।
तेजस्वी ने पत्र को सोशल मीडिया पर साझा करते हुए कहा, “जाति जनगणना के लिए संघर्ष करने वाले लाखों लोग सिर्फ़ आँकड़े नहीं चाहते। वे सम्मान और सशक्तिकरण (Empowerment) की प्रतीक्षा में हैं।” उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्या इस जनगणना के आँकड़ों का उपयोग सामाजिक सुधारों के लिए होगा, या यह कई पुरानी सरकारी रिपोर्टों की तरह अभिलेखागार में दबकर रह जाएगा।
बिहार के सर्वे का हवाला
पत्र में तेजस्वी ने बिहार के जाति सर्वेक्षण का उल्लेख करते हुए इसके नतीजों पर प्रकाश डाला। उन्होंने लिखा कि बिहार में हुए सर्वे से पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) राज्य की आबादी का लगभग 63% हिस्सा हैं। उन्होंने अनुमान जताया कि राष्ट्रीय जनगणना में भी ऐसा ही पैटर्न सामने आ सकता है, जो हाशिए पर मौजूद समुदायों की वास्तविक स्थिति को उजागर करेगा।
तेजस्वी ने बिहार के अनुभव का ज़िक्र करते हुए केंद्र पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जब बिहार सरकार ने अपने संसाधनों से यह सर्वे शुरू किया, तब केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसे बाधित करने की कोशिश की। उन्होंने केंद्र से अपील की कि वह इस बार पारदर्शी और समावेशी तरीके से जनगणना कराए, ताकि इसका लाभ समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों तक पहुँचे।
सियासी निहितार्थ और बिहार की राजनीति
जाति जनगणना का मुद्दा बिहार में हमेशा से संवेदनशील रहा है। बिहार पहला राज्य था, जिसने 2023 में जाति आधारित सर्वेक्षण करवाया, और इसके नतीजों ने सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को नई दिशा दी। तेजस्वी का यह पत्र 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी माहौल को और गर्माने वाला है। राजद इस मुद्दे को सामाजिक न्याय (Social Justice) और पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण से जोड़कर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि, यह फैसला सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच तनाव का कारण भी बन सकता है। तेजस्वी के पत्र ने केंद्र पर दबाव बढ़ाया है कि वह जनगणना के आँकड़ों का उपयोग ठोस नीतिगत सुधारों के लिए करे। दूसरी ओर, एनडीए नेता इस फैसले को अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर सकते हैं, जिससे श्रेय की यह जंग और तेज़ हो सकती है।
सामाजिक सुधार की उम्मीद
तेजस्वी ने अपने पत्र में यह उम्मीद जताई कि जाति जनगणना सामाजिक समानता और सशक्तिकरण की दिशा में एक मज़बूत कदम होगी। उन्होंने कहा कि यह जनगणना केवल आँकड़ों का संग्रह नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह उन समुदायों को आवाज़ देनी चाहिए जो लंबे समय से उपेक्षित हैं। उन्होंने केंद्र से अपील की कि वह इस अवसर का उपयोग सामाजिक और आर्थिक नीतियों को अधिक समावेशी (Inclusive) बनाने के लिए करे।
इसके साथ ही, तेजस्वी ने यह सवाल उठाया कि क्या सरकार इन आँकड़ों को नीतिगत बदलावों के लिए इस्तेमाल करेगी, या यह सिर्फ़ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा। यह सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि अतीत में कई आयोगों की सिफारिशें लागू नहीं हो सकीं।
एक नई शुरुआत?
तेजस्वी यादव का खुला पत्र न केवल जाति जनगणना के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि बिहार की सियासत में एक नई बहस की शुरुआत भी करता है। यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है, बशर्ते इसका कार्यान्वयन पारदर्शी हो और इसके नतीजे नीतिगत सुधारों का आधार बनें। बिहार में यह मुद्दा आने वाले महीनों में सियासी दलों की रणनीतियों को प्रभावित करेगा, और तेजस्वी का पत्र इस बहस को और तेज़ करने वाला है।