बड़वानी, मध्यप्रदेश: मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा में एक अनोखा और प्रेरणादायी नजारा देखने को मिला, जहां दुल्हन वैष्णवी सूर्यवंशी ने परंपराओं को तोड़ते हुए तलवार थामे और घोड़ी पर सवार होकर अपनी बारात निकाली। शुक्रवार देर रात सेंधवा की देवझिरी कॉलोनी में बैंड-बाजे की धुन पर वैष्णवी के परिजन और रिश्तेदार जमकर थिरके, जबकि दुल्हन ने घोड़ी पर सवार होकर समाज को बेटा-बेटी में बराबरी का संदेश दिया। वैष्णवी के पिता गोपाल सूर्यवंशी ने अपनी बेटी को बेटे जैसी परवरिश देने की बात कहकर हर किसी का दिल जीत लिया। इस अनोखी बारात ने न केवल स्थानीय लोगों को हैरान किया, बल्कि सामाजिक बदलाव की एक नई मिसाल भी कायम की।
घोड़ी पर सवार दुल्हन, झांसी की रानी सा अहसास
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेंधवा के गोपाल सूर्यवंशी की बेटी वैष्णवी की शादी 17 मई, 2025 को थी। शादी से एक दिन पहले, शुक्रवार रात को वैष्णवी ने दुल्हन के जोड़े में सजकर, हाथ में तलवार थामे और घोड़ी पर सवार होकर बाना (बारात) निकाला। यह नजारा देखकर हर कोई स्तब्ध रह गया। आमतौर पर दूल्हे को घोड़े पर सवार होकर बारात निकालते देखा जाता है, लेकिन वैष्णवी ने इस परंपरा को तोड़कर नया इतिहास रचा। उनके साथ उनके परिवार, रिश्तेदार, और दोस्त बैंड-बाजे की धुन पर झूमते हुए चल रहे थे।
वैष्णवी सूर्यवंशी ने इस मौके पर अपने दिल की बात साझा करते हुए कहा, “बचपन से मेरा सपना था कि मैं लड़कों की तरह घोड़े पर सवार होकर बारात निकालूं। आज यह सपना पूरा हुआ, और मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं झांसी की रानी हूं।” उन्होंने हाल के भारत-पाकिस्तान तनाव का जिक्र करते हुए कहा, “युद्ध में भी लड़कियां थीं, सेना में भी हैं। समाज को यह समझना चाहिए कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं। मैं अपने इस कदम से यही संदेश देना चाहती हूं कि लड़कियां हर क्षेत्र में आगे हैं और बराबरी का हक रखती हैं।”
पिता का दिल छूने वाला संदेश
वैष्णवी के पिता गोपाल सूर्यवंशी, जो पेशे से पेंटर हैं, ने अपनी बेटी की इस अनोखी बारात को पूरे गर्व के साथ समर्थन दिया। उन्होंने कहा, “मैं बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं मानता। मेरी बेटी वैष्णवी को मैंने बेटे की तरह पाला है। मेरे चार बच्चे हैं—दो बेटे और दो बेटियां। वैष्णवी सबसे छोटी है, और मैंने उसकी हर इच्छा पूरी की है। समाज को मेरा संदेश है कि बेटा-बेटी को बराबर समझें, उनमें कोई भेद न करें।”
गोपाल का यह बयान न केवल उनकी प्रगतिशील सोच को दर्शाता है, बल्कि समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। उनकी बातों ने न सिर्फ स्थानीय लोगों का दिल जीता, बल्कि सोशल मीडिया पर भी उनकी तारीफ हो रही है।
सामाजिक बदलाव की नई शुरुआत
यह पहली बार नहीं है जब बड़वानी जिले में सामाजिक परंपराओं को चुनौती दी गई हो, लेकिन वैष्णवी की बारात ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। परंपरागत रूप से भारतीय शादियों में दूल्हा घोड़े पर सवार होकर बारात निकालता है, जबकि दुल्हन का विदाई समारोह शांत और भावनात्मक होता है। लेकिन बदलते समय के साथ, खासकर ग्रामीण इलाकों में, लड़कियां और उनके परिवार पुरानी रूढ़ियों को तोड़ रहे हैं।
वैष्णवी का यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत इच्छा की पूर्ति है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा भी है। उनके इस कदम ने सेंधवा और आसपास के इलाकों में चर्चा का माहौल बना दिया है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह नजारा देखकर उन्हें गर्व महसूस हुआ, और यह समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा।
प्रेरणा का स्रोत: झांसी की रानी और आधुनिक नारी शक्ति
वैष्णवी ने अपनी बारात के दौरान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जिक्र किया, जो न केवल उनकी प्रेरणा थीं, बल्कि भारतीय इतिहास में नारी शक्ति का प्रतीक भी हैं। इसके साथ ही, उन्होंने हाल के भारत-पाकिस्तान तनाव में महिलाओं की भूमिका का उल्लेख किया, जो सेना में और अन्य क्षेत्रों में अपनी बहादुरी और योगदान के लिए जानी जाती हैं।
यह बयान आज की युवा पीढ़ी की सोच को दर्शाता है, जो न केवल अपनी परंपराओं का सम्मान करती है, बल्कि उन्हें आधुनिक और समावेशी बनाना भी चाहती है। वैष्णवी की यह पहल उन तमाम लड़कियों के लिए एक प्रेरणा है जो अपने सपनों को साकार करना चाहती हैं और समाज की रूढ़ियों को चुनौती देना चाहती हैं।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
वैष्णवी की बारात ने न केवल बड़वानी में, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में एक नई बहस छेड़ दी है। सामाजिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की पहल ग्रामीण भारत में लैंगिक समानता को बढ़ावा देगी। यह घटना उन परिवारों के लिए भी एक उदाहरण है जो अपनी बेटियों को बेटों के समान अवसर देना चाहते हैं।
सोशल मीडिया पर इस घटना की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं। लोग वैष्णवी के साहस और उनके पिता की प्रगतिशील सोच की तारीफ कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “वैष्णवी ने दिखा दिया कि लड़कियां किसी से कम नहीं। उनके पिता का संदेश हर माता-पिता को प्रेरित करेगा।” एक अन्य यूजर ने कहा, “यह नजारा देखकर गर्व हुआ। बेटियां ऐसी ही होनी चाहिए—नन्हा सा सपना, बड़ा सा हौसला।”
एक नए युग की शुरुआत
बड़वानी के सेंधवा में वैष्णवी सूर्यवंशी की अनोखी बारात न केवल एक शादी का हिस्सा थी, बल्कि सामाजिक बदलाव और लैंगिक समानता की एक मिसाल भी थी। तलवार थामे, घोड़ी पर सवार वैष्णवी ने न सिर्फ अपने बचपन का सपना पूरा किया, बल्कि समाज को यह संदेश दिया कि बेटियां हर क्षेत्र में बराबरी का हक रखती हैं। उनके पिता गोपाल सूर्यवंशी का बेटा-बेटी में भेद न करने का संदेश हर परिवार के लिए प्रेरणा है। यह कहानी उन तमाम बेटियों और उनके माता-पिता को समर्पित है जो रूढ़ियों को तोड़कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं।