आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला, वित्तीय जरूरत साबित करना जरूरी

Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा, वित्तीय जरूरत साबित करनी होगी। आईआरटीएस अधिकारी पत्नी का केस खारिज, क्योंकि वह खुद सक्षम है। कोर्ट ने गुजारा भत्ते को सामाजिक न्याय का साधन बताया, न कि धन बांटने का।

Samvadika Desk
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AI जनित प्रतीकात्मक इमेज
Highlights
  • दिल्ली हाईकोर्ट: आत्मनिर्भर पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा!
  • गुजारा भत्ता जरूरतमंदों के लिए, धन बांटने का जरिया नहीं!
  • आईआरटीएस अधिकारी पत्नी का भत्ता खारिज, पति वकील!

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर जीवनसाथी को स्थायी गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता सामाजिक न्याय का साधन है, न कि सक्षम व्यक्तियों के बीच धन बांटने का जरिया। इस फैसले में कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें एक महिला को उसके पति से गुजारा भत्ता देने से इनकार किया गया था, क्योंकि वह खुद उच्च पद की सरकारी अधिकारी थी।

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गुजारा भत्ता: जरूरत साबित करनी होगी

आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत गुजारा भत्ता देते समय न्यायिक विवेक का सही इस्तेमाल पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि आवेदक को अपनी वास्तविक वित्तीय कमजोरी के साक्ष्य पेश करने होंगे। विवेक का प्रयोग रिकॉर्ड, पक्षों की आर्थिक स्थिति और जरूरत के आधार पर ही संतुलित तरीके से किया जाना चाहिए। जहां आवेदक आत्मनिर्भर हो, वहां गुजारा भत्ता अस्वीकार किया जा सकता है।

केस का विवरण: आईआरटीएस अधिकारी पत्नी को नकारा गया भत्ता

यह फैसला एक तलाक के मामले में आया, जहां पत्नी भारतीय रेलवे यातायात सेवा (आईआरटीएस) की ग्रुप-ए अधिकारी हैं, जबकि पति एक प्रोफेशनल वकील हैं। दोनों की शादी जनवरी 2010 में हुई, लेकिन 14 महीने बाद ही वे अलग हो गए। पति ने पत्नी पर मानसिक व शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाया—जिसमें गाली-गलौज, अपमानजनक संदेश, वैवाहिक अधिकारों से वंचन और सामाजिक-पेशेवर अपमान शामिल थे। पत्नी ने इन आरोपों का खंडन किया और पति पर ही क्रूरता का इल्जाम लगाया।

फैमिली कोर्ट ने पत्नी के तलाक के लिए 50 लाख रुपये की मांग को क्रूरता मानते हुए शादी भंग कर दी। हाईकोर्ट ने इस निष्कर्ष से सहमत होते हुए कहा कि पत्नी ने पति व उसके माता-पिता के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया, जो मानसिक क्रूरता है। साथ ही, शादी की छोटी अवधि, कोई संतान न होना और पत्नी की वित्तीय आत्मनिर्भरता को देखते हुए स्थायी गुजारा भत्ता अस्वीकार किया।

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फैसले के मुख्य बिंदु

  • आत्मनिर्भरता का आधार: पत्नी एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी होने के कारण आर्थिक रूप से मजबूत थी, इसलिए भत्ता देने का कोई आधार नहीं।
  • क्रूरता साबित: पत्नी की मांग और व्यवहार को क्रूरता माना गया।
  • कोई हस्तक्षेप नहीं: संपूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले में बदलाव की जरूरत नहीं।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह फैसला गुजारा भत्ता संबंधी मामलों में नई मिसाल कायम करता है। कोर्ट ने जोर दिया कि भत्ता केवल जरूरतमंदों के लिए है, न कि आर्थिक समानता के लिए। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे ऐसे केस कम होंगे जहां आत्मनिर्भर साथी अनावश्यक दबाव बनाते हैं। एक वकील ने कहा, “यह फैसला न्यायिक विवेक को सही दिशा देता है और फर्जी दावों पर अंकुश लगाएगा।”

भविष्य के मामलों पर असर

यह फैसला हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आने वाले गुजारा भत्ता के दावों को प्रभावित करेगा। अब आवेदकों को मजबूत साक्ष्य देना होगा, खासकर जब वे खुद कमाने वाले हों। कोर्ट का यह रुख पारिवारिक विवादों में निष्पक्षता और वास्तविकता पर जोर देता है, जो लंबे मुकदमों को कम करने में मददगार साबित होगा।

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल इस केस का अंत है, बल्कि गुजारा भत्ता कानून की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण कदम भी। अब अन्य कोर्ट्स भी इसी सिद्धांत का पालन करेंगे।

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