प्रयागराज, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुई एक चौंकाने वाली घटना ने सभी को हिलाकर रख दिया। दारागंज के शास्त्री पुल पर मंगलवार, 1 जुलाई 2025 की सुबह एक 22 साल की शादीशुदा महिला और उसके 24 साल के प्रेमी ने रस्सी से हाथ बांधकर गंगा नदी में छलांग लगा दी। दोनों पारिवारिक और मानसिक परेशानियों से जूझ रहे थे। गनीमत रही कि जल पुलिस ने तुरंत कार्रवाई कर दोनों की जान बचा ली। पुलिस ने मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है, और यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि इस कदम के पीछे की वजह क्या थी।
शादीशुदा प्रेमिका और प्रेमी की प्रेम कहानी
जानकारी के मुताबिक, युवती शिवकुटी के तेलियरगंज की रहने वाली है और उसकी शादी हो चुकी है। वह अपनी ससुराल में लंबे समय से मानसिक प्रताड़ना झेल रही थी। कई बार समझौते की कोशिशें हुईं, लेकिन हालात नहीं सुधरे। इसी दौरान उसका संपर्क अपने पुराने प्रेमी से फिर से हुआ। दोनों ने एक-दूसरे से अपनी परेशानियाँ साझा कीं और जिंदगी से हार मानकर आत्महत्या का रास्ता चुन लिया। दोनों का प्रेम प्रसंग लंबे समय से चल रहा था, और पारिवारिक दबावों ने उन्हें इस कठोर कदम उठाने की ओर धकेल दिया।
रस्सी से बांधे हाथ, गंगा में लगाई छलांग
मंगलवार सुबह करीब 8 बजे, प्रेमी जोड़ा शास्त्री पुल पर पहुँचा। दोनों ने आत्महत्या की योजना बनाई और रस्सी से अपने हाथ बांध लिए ताकि बचने का कोई रास्ता न रहे। इसके बाद उन्होंने गंगा में छलांग लगा दी। वहाँ मौजूद जल पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया और दोनों को सुरक्षित बाहर निकाला। पुलिस का कहना है कि अगर रेस्क्यू में जरा सी देरी होती, तो दोनों की जान बचाना मुश्किल हो जाता। दोनों को प्राथमिक उपचार के लिए अस्पताल भेजा गया।
पुलिस की जाँच और ससुराल पर नजर
पुलिस ने इस मामले में जाँच शुरू कर दी है। प्रारंभिक पूछताछ में युवती ने ससुराल में मानसिक प्रताड़ना की बात कही, जिसके चलते वह टूट चुकी थी। पुलिस यह भी जाँच रही है कि क्या इस आत्महत्या के प्रयास के पीछे किसी तीसरे पक्ष का उकसावा तो नहीं था। युवती के ससुराल वालों से पूछताछ शुरू हो गई है, और जल्द ही मामले की तह तक जाने की कोशिश की जा रही है।
जिंदगी और प्रेम का सवाल
यह घटना केवल एक प्रेम कहानी या आत्महत्या का प्रयास नहीं, बल्कि समाज में रिश्तों, जिम्मेदारियों और मानसिक संतुलन को लेकर कई सवाल खड़े करती है। क्या यह केवल ससुराल में प्रताड़ना का मामला था, या इसके पीछे कोई और मनोवैज्ञानिक, पारिवारिक या नैतिक उलझनें भी थीं? क्या विवाह जैसे सामाजिक बंधन में रहते हुए पूर्व प्रेम संबंधों को जारी रखना उचित है? क्या पति का पक्ष भी सुना गया, या उसे पहले ही दोषी मान लिया गया? पति के पक्ष को सुनने के बाद ही पता चलेगा कि आखिर बजह क्या हो सकती है।
यह घटना हमें मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक संवाद, और वैवाहिक रिश्तों में पारदर्शिता जैसे विषयों पर सोचने को मजबूर करती है। ज़रूरी है कि ऐसे मामलों में केवल भावनात्मक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि तथ्य, तटस्थता और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर मूल्यांकन किया जाए — ताकि न किसी निर्दोष को सज़ा मिले, और न कोई ज़रूरतमंद न्याय से वंचित हो।