हिंदू विवाह: स्टांप पेपर पर तलाक अमान्य, लखनऊ हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, आर्य समाज प्रमाण पत्र पर भी उठाए सवाल

UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 21 जुलाई 2025 को फैसला सुनाया कि स्टांप पेपर पर तलाक अमान्य है और केवल हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक वैध है। डॉली रानी की अनुकंपा नियुक्ति याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने आर्य समाज मंदिर के विवाह प्रमाण पत्र को भी अवैध माना।

Samvadika Desk
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AI जनित प्रतीकात्मक इमेज
Highlights
  • लखनऊ हाईकोर्ट ने स्टांप पेपर पर तलाक को बताया अमान्य!
  • आर्य समाज विवाह प्रमाण पत्र वैध साक्ष्य नहीं: कोर्ट!
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत ही तलाक वैध!

लखनऊ, उत्तर प्रदेश: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह को स्टांप पेपर पर लिखकर समाप्त नहीं किया जा सकता। तलाक केवल हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के प्रावधानों के तहत ही संभव है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आर्य समाज मंदिर से जारी विवाह प्रमाण पत्र वैध साक्ष्य नहीं माना जा सकता। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। यह आदेश 21 जुलाई 2025 को सुर्खियों में रहा।

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याचिका और दलील

हिन्दुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने डॉली रानी की अनुकंपा नियुक्ति से संबंधित याचिका पर यह फैसला सुनाया। डॉली ने दावा किया कि कृषि विभाग के कर्मचारी नीरज गिरी की पहली पत्नी से तलाक के बाद, उन्होंने 2021 में आर्य समाज मंदिर में नीरज से शादी की थी। उन्होंने आर्य समाज का विवाह प्रमाण पत्र पेश किया और कहा कि नीरज का पहली पत्नी से स्टांप पेपर पर गवाहों की मौजूदगी में तलाक हुआ था। इस आधार पर उन्होंने मृतकाश्रित के तौर पर नौकरी माँगी।

पहली पत्नी का विरोध

याचिका का नीरज की पहली पत्नी ने विरोध किया। उन्होंने स्टांप पेपर पर तलाक के दावे को चुनौती दी और अनुकंपा नियुक्ति पर आपत्ति जताई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने मामले की गहराई से जाँच की।

कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत ही तलाक वैध है। स्टांप पेपर पर लिखा तलाक कानूनी रूप से मान्य नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आर्य समाज मंदिर का विवाह प्रमाण पत्र विवाह का वैध साक्ष्य नहीं है, जैसा कि पहले के फैसलों में भी स्थापित हो चुका है।

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याचिका खारिज

न्यायमूर्ति माथुर ने डॉली रानी की याचिका को खारिज कर दिया, क्योंकि उनके दावे कानूनी मापदंडों पर खरे नहीं उतरे। कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने पर जोर दिया।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव

यह फैसला हिंदू विवाह की कानूनी प्रक्रियाओं और अनुकंपा नियुक्ति जैसे मामलों में स्पष्टता लाता है। यह समाज को गैर-कानूनी तलाक और अवैध प्रमाण पत्रों के प्रति सतर्क करता है। साथ ही, यह धार्मिक संस्थानों द्वारा जारी दस्तावेजों की वैधता पर सवाल उठाता है।

जागरूकता की जरूरत

यह मामला हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों को समझने और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने की जरूरत को रेखांकित करता है। यह समाज से जागरूकता और कानूनी सलाह लेने की माँग करता है, ताकि ऐसी याचिकाएँ और विवाद टाले जा सकें।

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