शाहजहांपुर: बेटी का रिश्ता देखने गई माँ ने होने वाले दामाद से रचाई शादी, बेटी ने दिया साथ!

Sas-Damad Love Marriage: शाहजहांपुर के रमस्तपुर गाँव में 45 साल की विधवा माँ अपनी बेटी के लिए रिश्ता देखने गई, लेकिन वहाँ चुने गए युवक से खुद प्रेम हो गया। दोनों ने मंदिर में शादी कर ली। बेटी ने माँ के इस फैसले का समर्थन किया और नई शुरुआत के लिए शुभकामनाएँ दीं।

Samvadika Desk
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AI जनित प्रतीकात्मक इमेज
Highlights
  • शाहजहांपुर में माँ ने बेटी के लिए चुने दामाद से रचाई शादी, बेटी ने दिया साथ!
  • रमस्तपुर गाँव की प्रेम कहानी, सामाजिक रीति-रिवाजों पर उठे सवाल!
  • माँ-बेटी का अटूट रिश्ता: प्रेम और विश्वास की जीती-जागती मिसाल!
  • बेटी का बड़ा दिल: माँ के प्रेम को समझा, दी नई जिंदगी की शुभकामनाएँ!

शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई है, जिसने सबको चौंका दिया। यहाँ एक 45 साल की विधवा माँ अपनी बेटी के लिए वर तलाशने गई थी, लेकिन नियति ने कुछ और ही रंग दिखाया। जिस युवक को उसने अपनी बेटी के लिए चुना, वही उसका जीवनसाथी बन गया। इस अनोखी शादी में सबसे खास बात यह रही कि बेटी ने अपनी माँ का पूरा साथ दिया और इस नए रिश्ते को आशीर्वाद दिया। यह घटना अब गाँव-गाँव में चर्चा का विषय बनी हुई है।

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कहानी की शुरुआत

खबरों के मुताबिक, शाहजहांपुर के बंडा क्षेत्र के रमस्तपुर गाँव की रहने वाली इस माँ के पति का देहांत तीन साल पहले हो गया था। तब से वह अपनी बेटी के साथ अकेले जीवन बिता रही थी। बेटी अब शादी की उम्र में थी, इसलिए माँ उसके लिए एक अच्छा वर ढूँढ रही थी। कई जगह रिश्ते देखे गए, पर बात कहीं बनी नहीं। इसी दौरान वह शाहजहांपुर के पास एक गाँव में रिश्ता देखने गई, जहाँ एक युवक उसे अपनी बेटी के लिए पसंद आया।

माँ ने युवक का फोन नंबर लिया और बेटी के रिश्ते की बात आगे बढ़ाने के लिए संपर्क शुरू किया। धीरे-धीरे यह बातचीत दोस्ती में बदली और फिर प्रेम में। माँ ने हिम्मत दिखाकर युवक से खुद शादी की बात कही। हैरानी की बात यह थी कि युवक ने भी बिना किसी झिझक के हामी भर दी। दोनों ने शाहजहांपुर के एक मंदिर में वरमाला डालकर शादी (Temple Marriage) कर ली।

बेटी का बड़ा दिल

जब माँ ने अपनी बेटी को इस रिश्ते की सच्चाई बताई, तो बेटी ने माँ की भावनाओं को समझा और उनका साथ देने का फैसला किया। उसने न सिर्फ माँ के फैसले का समर्थन किया, बल्कि उन्हें इस शादी के लिए प्रोत्साहित भी किया। चार दिन पहले मंदिर में हुई इस शादी में बेटी ने अपनी माँ को नई जिंदगी की शुरुआत के लिए शुभकामनाएँ दीं। माँ-बेटी का यह अटूट रिश्ता (Mother-Daughter Bond) इस कहानी को और भी खास बनाता है।

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गाँव में हलचल

जब यह नवविवाहित जोड़ा (Newlywed Couple) गाँव लौटा, तो लोग दंग रह गए। किसी को यकीन नहीं था कि बेटी का रिश्ता देखने निकली माँ खुद दुल्हन बनकर लौटेगी। कुछ लोग इस रिश्ते को सामाजिक रीति-रिवाजों के खिलाफ मान रहे हैं, तो कई इसे माँ की हिम्मत और साहसिक कदम बता रहे हैं। यह प्रेम प्रसंग अब आसपास के गाँवों में चर्चा का केंद्र बन गया है।

अलीगढ़ की तरह एक और मामला

यह घटना अलीगढ़ में कुछ समय पहले घटी एक ऐसी ही सास-दामाद की शादी की याद दिलाती है, जिसने खूब सुर्खियाँ बटोरी थीं। शाहजहांपुर की यह कहानी समाज के सामने कई सवाल खड़े करती है—क्या प्रेम और नई शुरुआत की कोई उम्र होती है? क्या सामाजिक बंधन व्यक्तिगत सुख से बड़े हैं? इस माँ ने न केवल अपनी जिंदगी को नया मौका दिया, बल्कि बेटी के समर्थन से यह भी दिखाया कि सच्चा प्यार और परिवार का साथ हर कदम पर साथ निभा सकता है।

असमान्य फैसला और बेटी का समर्थन

शाहजहांपुर की यह घटना केवल एक विवाह प्रसंग नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, पारिवारिक समझ और सामाजिक ढांचे पर पुनर्विचार की मिसाल बनकर उभरी है। 45 वर्षीय विधवा महिला द्वारा जीवन को नया मोड़ देना और बेटी द्वारा उसमें सहयोग देना इस बात का संकेत है कि पारिवारिक समर्थन से असामान्य फैसले भी स्वीकार्य हो सकते हैं।

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