पड़ोसी की एक कॉल ने बचाया: पीलीभीत में 14 साल की लड़की का… बारात लौटी बैरंग!

Pilibhit News: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में एक सजग पड़ोसी की कॉल ने 14 साल की नाबालिग लड़की को बाल विवाह के खतरे से बचा लिया। हेल्पलाइन और पुलिस की सख्त कार्रवाई से बारात लौटी बैरंग। यह घटना न केवल कानूनी चेतना, बल्कि सामाजिक जागरूकता की भी जीत है। बूंदी में बाल विवाह रोकने की हालिया घटनाएँ इस प्रयास को राष्ट्रीय संदर्भ देती हैं।

Samvadika Desk
7 Min Read
प्रतीकात्मक इमेज
Highlights
  • पीलीभीत में 14 साल की बच्ची का बाल विवाह रुका, बारात लौटी खाली हाथ!
  • पड़ोसी की एक कॉल ने बदली किस्मत, हेल्पलाइन ने रोकी शादी!
  • दस्तावेज़ माँगते ही भड़के परिजन, पुलिस ने संभाली स्थिति!
  • पहले भी इंस्टाग्राम स्टोरी से खुली थी शादी की पोल!

पीलीभीत, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में एक पड़ोसी की सतर्कता ने 14 साल की नाबालिग लड़की को बाल विवाह के बंधन में बंधने से बचा लिया। महिला कल्याण हेल्पलाइन की टीम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए पूरनपुर थाना क्षेत्र के एक गाँव में शादी की रस्में रुकवाईं और बारात को बिना दुल्हन के वापस भेज दिया। इस कार्रवाई के दौरान टीम को ग्रामीणों के गुस्से का सामना करना पड़ा, लेकिन पुलिस की मदद से नाबालिग का भविष्य सुरक्षित किया गया। यह घटना बाल विवाह के खिलाफ सामाजिक जागरूकता और कानूनी सख्ती की जीत का प्रतीक है।

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पूरनपुर में शादी की तैयारियाँ, पड़ोसी ने बदला खेल

न्यूज18 की रिपोर्ट के अनुसार, घटना पीलीभीत के पूरनपुर थाना क्षेत्र के एक गाँव की है, जहाँ एक 14 साल की नाबालिग लड़की की शादी उसके परिवार की सहमति से तय की गई थी। बदायूँ के उझानी से बारात गाँव पहुँची थी, और शादी की रस्में शुरू हो चुकी थीं। दावत का आयोजन हो रहा था, और गाँव में उत्साह का माहौल था। लेकिन एक पड़ोसी ने इस शादी पर सवाल उठाया और महिला कल्याण हेल्पलाइन को फोन कर सूचना दी कि लड़की नाबालिग है। इस एक कॉल ने पूरी कहानी बदल दी।

ग्रामीणों का विरोध, पुलिस ने संभाला मोर्चा

हेल्पलाइन की टीम तुरंत गाँव पहुँची और लड़की की उम्र साबित करने वाले दस्तावेज़ माँगे। परिजनों ने शुरू में दस्तावेज़ दिखाने से इनकार किया और बहाने बनाने लगे। जब टीम ने सख्त रुख अपनाया, तो परिजन और कुछ ग्रामीण भड़क गए। उन्होंने टीम के साथ बदसलूकी की और कार्रवाई का विरोध किया। स्थिति अनियंत्रित होने की आशंका को देखते हुए हेल्पलाइन ने स्थानीय पुलिस को बुलाया।

पुलिस की मौजूदगी में दस्तावेज़ों की जाँच की गई, जिसमें लड़की की उम्र मात्र 14 साल पाई गई। यह शादी बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत गैरकानूनी थी। पुलिस ने परिजनों को कानूनी परिणामों की चेतावनी दी और शादी को तुरंत रुकवाया। बारात को बैरंग वापस लौटना पड़ा, और नाबालिग को बाल विवाह के दंश से बचाया गया।

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पहले भी हुआ था ऐसा: इंस्टाग्राम ने खोला राज

पीलीभीत में बाल विवाह का यह पहला मामला नहीं है। कुछ समय पहले बरखेड़ा थाना क्षेत्र के एक गाँव में एक नाबालिग लड़की की शादी करा दी गई थी। इसकी जानकारी तब सामने आई, जब दूल्हे ने अपनी पत्नी की तस्वीर इंस्टाग्राम स्टोरी पर डाली। स्टोरी वायरल होने के बाद प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई की और नाबालिग को उसके परिजनों के हवाले किया। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि सामाजिक जागरूकता और डिजिटल माध्यम बाल विवाह को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

राजस्थान के बूंदी में भी दिखी थी ऐसी सतर्कता

बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई का एक और उल्लेखनीय उदाहरण राजस्थान के बूंदी जिले में देखने को मिला। 30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया के मौके पर बूंदी प्रशासन ने बाल कल्याण समिति और पुलिस के सहयोग से 14 बाल विवाहों को रोका। इस कार्रवाई में प्रशासन ने पहले से ही संदिग्ध शादियों की सूची तैयार की थी और आयु प्रमाण पत्रों की जाँच की। कुछ मामलों में कोर्ट से निषेधाज्ञा भी ली गई। ग्रामीणों की भागीदारी और जागरूकता अभियानों ने इस प्रयास को सफल बनाया। बूंदी का यह मामला पीलीभीत की घटना से मिलता-जुलता है, क्योंकि दोनों ही जगह प्रशासन की तत्परता और सामाजिक जागरूकता ने नाबालिगों के अधिकारों की रक्षा की।

बाल विवाह: एक गंभीर सामाजिक समस्या

बाल विवाह भारत में एक गहरी जड़ें जमाए सामाजिक कुरीति है, जिसके पीछे गरीबी, अशिक्षा, और पारंपरिक मान्यताएँ प्रमुख कारण हैं। पीलीभीत की इस घटना में ग्रामीणों का आक्रोश और परिजनों की जिद इस बात का सबूत है कि इस प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनी सख्ती के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता की सख्त जरूरत है। बूंदी में ग्रामीण भागीदारी का सकारात्मक उदाहरण बताता है कि समाज भी बदलाव की दिशा में कदम उठा सकता है।

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कानूनी ढाँचा और चुनौतियाँ

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़कियों और 21 साल से कम उम्र के लड़कों की शादी गैरकानूनी है। इसके उल्लंघन पर दो साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। पीलीभीत में हेल्पलाइन और पुलिस ने इस कानून का सख्ती से पालन किया, लेकिन ग्रामीणों का विरोध कार्रवाई को मुश्किल बनाता है।

बूंदी में कोर्ट की निषेधाज्ञा और आयु जाँच जैसे कदमों ने कार्रवाई को और मजबूत किया। ये दोनों मामले दर्शाते हैं कि कानूनी ढाँचा तो मौजूद है, लेकिन इसे लागू करने के लिए स्थानीय स्तर पर समन्वय और जागरूकता जरूरी है।

सामाजिक जागरूकता की जीत

पीलीभीत की यह घटना एक पड़ोसी की सतर्कता और हेल्पलाइन की त्वरित कार्रवाई की जीत है। एक फोन कॉल ने न केवल एक नाबालिग का भविष्य बचाया, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाना कितना जरूरी है। बूंदी में प्रशासन और ग्रामीणों की भागीदारी ने भी यही साबित किया कि जागरूकता और सहयोग मिलकर बदलाव ला सकते हैं।

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बदलाव की शुरुआत?

पीलीभीत में 14 साल की लड़की का बाल विवाह रुकवाना एक छोटी, लेकिन सार्थक जीत है। यह घटना हमें सिखाती है कि एक व्यक्ति की सतर्कता और प्रशासन की सक्रियता एक बच्चे का भविष्य बदल सकती है। बूंदी में 14 बाल विवाहों को रोकने का उदाहरण भी यही संदेश देता है कि सामूहिक प्रयास इस कुरीति को खत्म कर सकते हैं।

बाल विवाह को जड़ से उखाड़ने के लिए शिक्षा, जागरूकता, और आर्थिक सशक्तीकरण जरूरी हैं। पीलीभीत और बूंदी की ये कहानियाँ समाज से अपील करती हैं कि हर बच्चे को उसका बचपन, शिक्षा, और सपने जीने का हक मिलना चाहिए। यह एक कॉल से शुरू हुआ बदलाव है, जो उम्मीद देता है कि समाज इस दिशा में और कदम बढ़ाएगा।

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