नई दिल्ली: भारत सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था और रोज़गार स्थिति को और पारदर्शी बनाने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने घोषणा की है कि 15 मई 2025 से भारत में हर महीने बेरोजगारी डेटा (Unemployment Data 2025) जारी किया जाएगा। अभी तक यह डेटा शहरी (Urban) क्षेत्रों के लिए त्रैमासिक (Quarterly) और शहरी-ग्रामीण (Urban-Rural) क्षेत्रों के लिए वार्षिक रूप से जारी होता था। MoSPI के मुताबिक, पहला मासिक डेटा जनवरी-मार्च 2025 की स्थिति को दर्शाएगा। इस कदम से नीति निर्माताओं को रोज़गार के रुझानों (Trends) को तुरंत समझने और प्रभावी योजनाएँ बनाने में मदद मिलेगी।
सरकार की नई नीति के फायदे
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस नई पहल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह जिला-स्तर (District-Level) के आँकड़े उपलब्ध कराएगी। इससे सरकार को स्थानीय स्तर की बेरोजगारी की चुनौतियों को समझने और उनके लिए सटीक हस्तक्षेप करने का मौका मिलेगा। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा जैसी योजनाओं को और मज़बूत किया जा सकता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में स्टार्टअप इंडिया (Startup India) या स्किल इंडिया (Skill India) जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा मिल सकता है। यह बदलाव भारत को उन विकसित देशों की श्रेणी में लाता है, जो मासिक बेरोजगारी डेटा नियमित रूप से जारी करते हैं, जैसे अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम।
MoSPI ने डेटा संग्रह की प्रक्रिया को भी उन्नत किया है, ताकि आँकड़े ज्यादा सटीक और समय पर उपलब्ध हों। पहले सर्वे में 16,000 लोगों को शामिल किया जाता था, जिसे अब बढ़ाकर 22,000 कर दिया गया है। इससे मार्जिन ऑफ एरर (Margin of error) कम होगा और डेटा की विश्वसनीयता बढ़ेगी। साथ ही, स्वचालित डेटा संग्रह (Automated Data Collection) और डिजिटल टूल्स के इस्तेमाल से डेटा संग्रह से लेकर रिलीज़ तक का समय काफी कम हो जाएगा। MoSPI के एक अधिकारी के मुताबिक, यह नई पद्धति न केवल तेज़ है, बल्कि पहले की तुलना में कहीं अधिक कुशल भी है।
बेरोजगारी को लेकर वर्तमान के कुछ आंकड़े
वर्तमान बेरोजगारी के आँकड़ों पर नज़र डालें तो पेरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के अनुसार, 2024 में 15 साल से अधिक उम्र के लोगों की बेरोजगारी दर 4.9% थी, जो 2023 के 5.0% से मामूली कम है। शहरी क्षेत्रों में अक्टूबर-दिसंबर 2024 के दौरान बेरोजगारी दर 6.4% रही, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 4.2% थी। ये आँकड़े सरकार की रोज़गार योजनाओं की कुछ हद तक सफलता दर्शाते हैं। हालांकि, निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के दिसंबर 2024 के आँकड़े अलग तस्वीर पेश करते हैं। CMIE के मुताबिक, कुल बेरोजगारी दर 8.65% थी, जिसमें शहरी क्षेत्रों में 10.08% और ग्रामीण क्षेत्रों में 7.97% थी। यह अंतर दोनों संस्थाओं की सर्वे पद्धति और सैंपल के अंतर के कारण है। MoSPI की मासिक डेटा पहल से इस तरह के अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है, बशर्ते डेटा की पारदर्शिता बनी रहे।
MoSPI की योजनाएँ यहीं खत्म नहीं होतीं। मंत्रालय ने कई अन्य महत्वपूर्ण डेटा पहल की घोषणा की है। अप्रैल 2025 तक निजी पूँजी व्यय (Private Capital Expenditure) के आँकड़े जारी किए जाएँगे, जो निवेश और आर्थिक विकास की स्थिति को समझने में मदद करेंगे। इसके अलावा, 2026 से अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) और सर्विस सेक्टर के लिए त्रैमासिक डेटा उपलब्ध होगा। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए श्रम बल के त्रैमासिक अनुमान भी शुरू होंगे। ये कदम भारत के डेटा संग्रह तंत्र को और मज़बूत करेंगे, खासकर उस अनौपचारिक क्षेत्र के लिए जो देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है।
नई पहल और उसकी चुनौतियां
इस नई पहल के बावजूद कुछ चुनौतियाँ भी हैं। CMIE जैसे निजी आँकड़ों के साथ तुलना में MoSPI को अपनी विश्वसनीयता साबित करनी होगी। डिजिटल टूल्स और बड़े सैंपल साइज़ के लिए संसाधनों और प्रशिक्षण की ज़रूरत होगी। साथ ही, राजनीतिक दबाव से बचते हुए डेटा की निष्पक्षता बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी। फिर भी, यह कदम भारत की अर्थव्यवस्था को समझने और रोज़गार नीतियों को प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ा बदलाव है।
मासिक बेरोजगारी डेटा न केवल नीति निर्माताओं, बल्कि अर्थशास्त्रियों, निवेशकों और आम जनता के लिए भी उपयोगी होगा। यह डेटा 2025 के केंद्रीय बजट और भविष्य की रोज़गार योजनाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जैसे-जैसे भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति मज़बूत कर रहा है, इस तरह की पारदर्शी और समय पर डेटा पहल उसे और आगे ले जाएगी।