नई दिल्ली: केंद्र सरकार के जाति जनगणना (Caste Census) कराने के ऐलान ने देश की सियासत में नया मोड़ ला दिया है। इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर इस फैसले को सामाजिक न्याय (Social Justice) की दिशा में ऐतिहासिक अवसर बताया। खरगे ने तेलंगाना मॉडल पर आधारित सर्वेक्षण, आरक्षण की 50% सीमा हटाने, और निजी शिक्षण संस्थानों में SC, ST, OBC के लिए आरक्षण की माँग की। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से सलाह-मशवरे की अपील भी की। बिहार में तेजस्वी यादव के हालिया पत्र के बाद खरगे का यह कदम विपक्ष की एकजुटता और सियासी दबाव को दर्शाता है।
केंद्र का फैसला और सियासी हलचल
30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित आँकड़े शामिल करने का फैसला लिया। इस घोषणा ने दशकों पुरानी माँग को हकीकत में बदल दिया, लेकिन साथ ही सियासी बयानबाजी और श्रेय की होड़ को भी जन्म दिया। खरगे ने अपने पत्र में इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जाति जनगणना को “विभाजनकारी” (Divisive) मानना गलत है। उन्होंने लिखा, “यह प्रक्रिया हमारे समाज के पिछड़े, उत्पीड़ित, और हाशिए पर पड़े वर्गों को उनके अधिकार दिलाती है।”
खरगे ने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले (Pahalgam Terror Attack) का ज़िक्र करते हुए राष्ट्रीय एकजुटता की बात की। उन्होंने कहा, “जिस तरह पहलगाम के कायराना हमले के बाद देश एकजुट हुआ, उसी तरह जाति जनगणना के लिए भी सभी लोग एक साथ आएँगे।” यह बयान न केवल उनकी माँग को नैतिक बल देता है, बल्कि सियासी माहौल में एकता का संदेश भी देता है।
खरगे की प्रमुख माँगें
मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने पत्र में तीन बड़ी माँगें रखीं:
- तेलंगाना मॉडल पर सर्वे: खरगे ने तेलंगाना के जाति सर्वेक्षण को एक आदर्श मॉडल बताया, जो सामाजिक और आर्थिक स्थिति को गहराई से विश्लेषित करता है। उन्होंने केंद्र से अपील की कि राष्ट्रीय जनगणना में भी ऐसी ही पारदर्शी और व्यापक पद्धति अपनाई जाए।
- 50% आरक्षण सीमा हटाएँ: खरगे ने आरक्षण की 50% की सीमा को “मनमानी” करार देते हुए इसे हटाने की माँग की। उनका कहना है कि यह सीमा सामाजिक न्याय की राह में बाधा है।
- निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण: अनुच्छेद 15(5) के तहत खरगे ने निजी शिक्षण संस्थानों में SC, ST, और OBC के लिए आरक्षण लागू करने की वकालत की। उन्होंने कहा कि शिक्षा में समानता (Equality in Education) सामाजिक सशक्तिकरण का आधार है।
खरगे ने केंद्र से सभी राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श करने की माँग भी की, ताकि यह प्रक्रिया सर्वसम्मति से हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए जाति जनगणना ज़रूरी है, जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में भी उल्लेख है।
तेजस्वी यादव का पत्र: विपक्ष की गूँज
खरगे का यह पत्र बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के हालिया पत्र के बाद आया, जिसने सियासी हलकों में खलबली मचा दी थी। तेजस्वी ने पीएम मोदी को लिखे अपने पत्र में बिहार के जाति सर्वेक्षण का हवाला देते हुए केंद्र पर रुकावटें डालने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि बिहार में सर्वे से पता चला कि OBC और EBC आबादी का 63% हैं, और राष्ट्रीय जनगणना भी ऐसी सच्चाइयों को उजागर करेगी। तेजस्वी ने आँकड़ों के नीतिगत उपयोग पर ज़ोर दिया था, ताकि हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्तिकरण (Empowerment) मिले।
खरगे का पत्र तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) की माँगों को और बल देता है। दोनों नेताओं के पत्र विपक्ष की एकजुट रणनीति को दर्शाते हैं, जो जाति जनगणना को सामाजिक न्याय और सियासी लाभ का मुद्दा बनाना चाहती है। खरगे ने तेजस्वी की तरह ही आँकड़ों के दुरुपयोग की आशंका जताई और केंद्र से पारदर्शिता की अपील की।
कांग्रेस की रणनीति और जयराम रमेश का समर्थन
कांग्रेस नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने खरगे के पत्र को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा करते हुए सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा, “2 मई को कांग्रेस कार्य समिति (Congress Working Committee, CWC) की बैठक के बाद खरगे जी ने यह पत्र लिखा। पहलगाम हमले से देश क्रोधित है, और पीएम मोदी ने अब जाति जनगणना पर यू-टर्न लिया है।” रमेश ने खरगे की तीनों माँगों का समर्थन किया और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में कांग्रेस की प्रतिबद्धता बताया।
कांग्रेस की यह सक्रियता दिखाती है कि पार्टी इस मुद्दे को 2025 के विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनाव में प्रमुखता देना चाहती है। खरगे का तेलंगाना मॉडल पर ज़ोर और निजी क्षेत्र में आरक्षण की माँग कांग्रेस की रणनीति को दक्षिण और उत्तर भारत दोनों में विस्तार देने का संकेत है।
सियासी निहितार्थ और चुनौतियाँ
जाति जनगणना का फैसला सियासी दलों के लिए अवसर और चुनौती दोनों है। बिहार में तेजस्वी यादव ने इसे राजद (RJD) की जीत के रूप में पेश किया, जबकि कांग्रेस (Congress) इसे सामाजिक समानता के अपने पुराने वादे से जोड़ रही है। लेकिन सत्तारूढ़ एनडीए (NDA) इस फैसले को अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर सकता है, जिससे विपक्ष के लिए सियासी लाभ लेना मुश्किल हो सकता है।
खरगे ने जिस तरह पहलगाम हमले को पत्र में शामिल किया, वह रणनीतिक है। यह न केवल उनकी माँग को राष्ट्रीय एकता से जोड़ता है, बल्कि सरकार को नैतिक दबाव में भी डालता है। हालांकि, उनकी माँगें—खासकर 50% आरक्षण सीमा हटाने और निजी संस्थानों में कोटा—विवादास्पद हो सकती हैं। कुछ दलों और समूहों का मानना है कि इससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।
भविष्य की राह और तेलंगाना मॉडल (Telangana Model)
खरगे का पत्र यह सवाल उठाता है कि क्या जाति जनगणना के आँकड़े सामाजिक सुधारों का आधार बनेंगे। तेलंगाना मॉडल, जिसमें सामाजिक-आर्थिक स्थिति का गहन विश्लेषण होता है, राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना एक जटिल प्रक्रिया होगी। इसके लिए व्यापक संसाधनों, प्रशिक्षित कर्मचारियों, और राजनीतिक सहमति की ज़रूरत है। खरगे की अपील कि सभी दलों से सलाह ली जाए, इस प्रक्रिया को समावेशी बनाने की दिशा में सकारात्मक कदम है।
जाति जनगणना सामाजिक न्याय की लंबी लड़ाई का हिस्सा है। खरगे और तेजस्वी जैसे नेताओं के पत्र सरकार पर दबाव बढ़ाते हैं कि यह केवल आँकड़ों का संग्रह न रहे, बल्कि नीतिगत बदलावों का आधार बने। यह देखना बाकी है कि केंद्र इस अवसर का उपयोग कैसे करता है।
सामाजिक बदलाव की उम्मीद
मल्लिकार्जुन खरगे का पत्र जाति जनगणना को सामाजिक समानता और सशक्तिकरण से जोड़ने की कोशिश है। तेजस्वी यादव के पत्र के बाद यह कदम विपक्ष की एकजुटता और सियासी रणनीति को दर्शाता है। यह फैसला भारत के सामाजिक ढाँचे को और समावेशी बनाने का मौका देता है, बशर्ते इसका कार्यान्वयन पारदर्शी और प्रभावी हो। बिहार से लेकर दिल्ली तक, यह मुद्दा सियासी और सामाजिक विमर्श को नई दिशा दे रहा है।