दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ी मुस्लिम आबादी, हिंदू-ईसाई समेत अन्य धर्मों का क्या है हाल?

Population by Religion: प्यू रिसर्च सेंटर की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, 2010-2020 में मुस्लिम आबादी सबसे तेजी से 34.7 करोड़ बढ़कर 2.0 अरब हुई, जबकि ईसाई 2.31 अरब के साथ सबसे बड़े हैं। हिंदू 1.2 अरब पर स्थिर, बौद्ध घटे, और नन्स 24.2% पर।

Samvadika Desk
8 Min Read
AI जनित प्रतीकात्मक इमेज
Highlights
  • मुस्लिम समुदाय की तेजी से बढ़ती जनसंख्या बदल रही है वैश्विक तस्वीर!
  • ईसाई अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समूह बने हुए है!
  • हिंदू आबादी भारत में स्थिर, वैश्विक हिस्सेदारी अपरिवर्तित!

नई दिल्ली: पिछले एक दशक में दुनिया की धार्मिक तस्वीर में कई बदलाव आए हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच मुस्लिम समुदाय की आबादी सबसे तेज़ी से बढ़ी है, जबकि ईसाई अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समूह बने हुए हैं। हिंदू और यहूदी समुदायों की आबादी में स्थिर वृद्धि देखी गई, लेकिन बौद्ध समुदाय की संख्या में कमी आई है। आइए, इस वैश्विक धार्मिक परिदृश्य को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि भारत के संदर्भ में इसका क्या मतलब है।

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मुस्लिम आबादी: सबसे तेज़ वृद्धि

प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2020 के बीच मुस्लिम आबादी में 34.7 करोड़ की रिकॉर्ड वृद्धि हुई, जो किसी भी अन्य धार्मिक समुदाय से ज्यादा है। 2020 तक, दुनिया में 2.0 अरब मुस्लिम थे, जो वैश्विक आबादी का 25.7% हिस्सा बनाते हैं। यह हिस्सेदारी 2010 की तुलना में 1.8 प्रतिशत अंक बढ़ी है। मुस्लिम आबादी की तेज़ वृद्धि का मुख्य कारण है उनकी युवा जनसंख्या और अपेक्षाकृत ऊँची प्रजनन दर।

रिपोर्ट में बताया गया कि मुस्लिम समुदाय का औसत आयु 24 वर्ष है, जो गैर-मुस्लिमों की औसत आयु 33 वर्ष से काफी कम है। इसके अलावा, मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर (3-4 बच्चे प्रति महिला) भी वैश्विक औसत से अधिक है। खास बात यह है कि मुस्लिमों की यह वृद्धि उन क्षेत्रों में ज्यादा देखी गई, जैसे मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, और उप-सहारा अफ्रीका, जहाँ उनकी पहले से ही बड़ी आबादी मौजूद है।

ईसाई: सबसे बड़ा समूह, लेकिन हिस्सा घटा

ईसाई अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है, जिनकी संख्या 2010 में 2.19 अरब से बढ़कर 2020 में 2.31 अरब हो गई। इस दौरान 12.2 करोड़ की वृद्धि हुई, लेकिन वैश्विक आबादी में उनकी हिस्सेदारी 29% से घटकर 28.7% रह गई। इसका मुख्य कारण है यूरोप और उत्तरी अमेरिका में धार्मिक्सता (religious disaffiliation) का बढ़ना, जहाँ कई लोग ईसाई धर्म छोड़कर धार्मन (religiously unaffiliated) की श्रेणी में जा रहे हैं।

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हालांकि, उप-सहारा अफ्रीका में ईसाइयों की संख्या में तेज़ी आई। 2020 तक, दुनिया के 31% ईसाई अफ़्रीका में रहते हैं, जो 2010 में 24.8% था। मोज़ाम्बिक जैसे देश में ईसाइयों का अनुपात 5% बढ़ा। इसके उलट, यूरोप में उनकी हिस्सेदारी में कमी आई। प्यू की रिपोर्ट बताती है कि ईसाइयों की प्रजनन दर (2.6 बच्चे प्रति महिला) वैश्विक औसत से थोड़ी कम है, और उनकी औसत आयु भी अपेक्षाकृत अधिक है।

हिंदू: स्थिर लेकिन सीमित वृद्धि

हिंदू समुदाय की आबादी 2010 से 2020 तक 1.1 अरब से बढ़कर 1.2 अरब हो गई, यानी करीब 12.6 करोड़ की वृद्धि। वैश्विक आबादी में उनकी हिस्सेदारी 14.9% पर स्थिर रही, जो वैश्विक जनसंख्या वृद्धि के अनुरूप है। हिंदुओं की प्रजनन दर (2.3 बच्चे प्रति महिला) वैश्विक औसत (2.4) के करीब है, और उनकी औसत आयु 29 वर्ष है।

भारत, जहाँ दुनिया के 94% हिंदू रहते हैं, इस वृद्धि का मुख्य केंद्र रहा। प्यू की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हिंदुओं की हिस्सेदारी 2011 में 79.8% थी, जो 2020 में 79% रही। 2050 तक भारत की हिंदू आबादी 1.3 अरब तक पहुँच सकती है, लेकिन मुस्लिम आबादी (31.1 करोड़) के कारण उनकी हिस्सेदारी 77% तक सिमट सकती है। मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में हिंदुओं की संख्या में 62% की वृद्धि देखी गई, जो मुख्य रूप से प्रवास के कारण है।

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बौद्ध: आबादी में कमी

बौद्ध समुदाय एकमात्र ऐसा प्रमुख धार्मिक समूह है, जिसकी आबादी 2010 से 2020 तक घटी। 2010 में 34.3 करोड़ बौद्ध थे, जो 2020 में घटकर 32.4 करोड़ रह गए। इस कमी का कारण है कम प्रजनन दर (1.6 बच्चे प्रति महिला) और धार्मिक्सता, खासकर पूर्वी एशिया (चीन, जापान) में। बौद्धों की औसत आयु 36 वर्ष है, जो अन्य समूहों से अधिक है।

चीन, जहाँ दुनिया के आधे बौद्ध रहते हैं, में धार्मिक पहचान कमज़ोर होने से भी यह कमी आई। हालांकि, कई लोग बौद्ध प्रथाओं का पालन करते हैं, लेकिन औपचारिक रूप से बौद्ध के रूप में पहचान नहीं करते।

यहूदी: धीमी वृद्धि

यहूदी समुदाय, जो दुनिया का सबसे छोटा प्रमुख धार्मिक समूह है, 2010 में 1.38 करोड़ से बढ़कर 2020 में 1.48 करोड़ हो गया। वैश्विक आबादी में उनकी हिस्सेदारी 0.2% रही। उनकी प्रजनन दर (2.3 बच्चे प्रति महिला) हिंदुओं के बराबर है, लेकिन औसत आयु (40 वर्ष) अधिक होने से वृद्धि धीमी है।

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यहूदी मुख्य रूप से मध्य-पूर्व (इज़राइल) और उत्तरी अमेरिका में केंद्रित हैं। इज़राइल की आबादी 2010 में 58 लाख से बढ़कर 2020 में 68 लाख हो गई, जो इस वृद्धि का मुख्य कारण है।

धार्मिक्स (नास्तिक/अज्ञेयवादी): तीसरा सबसे बड़ा समूह

धार्मिक्स या “नन्स” (religiously unaffiliated) 2010 से 2020 तक 23.3% से बढ़कर 24.2% हो गए, और अब वे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा समूह हैं। उनकी संख्या 1.6 अरब तक पहुँच गई, जो मुख्य रूप से चीन (67% नन्स), अमेरिका, और जापान में केंद्रित है।

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हालांकि, नन्स की प्रजनन दर कम है, और उनकी औसत आयु (36 वर्ष) अधिक होने से उनकी वृद्धि सीमित है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ईसाइयों के धर्म छोड़ने से उनकी संख्या बढ़ी। भारत में नन्स की हिस्सेदारी नगण्य है, जो इसे अन्य देशों से अलग करता है।

भारत के संदर्भ में क्या?

भारत, जो दुनिया के सबसे विविध धार्मिक देशों में से एक है, में हिंदू (79%) और मुस्लिम (15%) प्रमुख समूह हैं। 2010 से 2020 तक भारत की मुस्लिम आबादी 17.2 करोड़ से बढ़कर करीब 20 करोड़ हो गई, जबकि हिंदू 96.6 करोड़ से 1.0 अरब हो गए। मुस्लिमों की युवा जनसंख्या (औसत आयु 24) और उच्च प्रजनन दर (3.2 बच्चे प्रति महिला) के कारण उनकी हिस्सेदारी बढ़ी।

हिंदुओं की प्रजनन दर (2.5) और औसत आयु (29) स्थिर है, लेकिन उनकी हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम हो रही है। ईसाई (2.8 करोड़) और अन्य समूह (सिख, बौद्ध, जैन) स्थिर रहे। भारत में धार्मिक्स की संख्या नगण्य है, जो वैश्विक ट्रेंड से उलट है।

क्यों हो रहे हैं ये बदलाव?

  1. प्रजनन दर: मुस्लिम और ईसाई समुदायों की उच्च प्रजनन दर उनकी वृद्धि का मुख्य कारण है। हिंदू और यहूदी औसत के करीब हैं, जबकि बौद्ध और नन्स की प्रजनन दर कम है।
  2. आयु संरचना: युवा जनसंख्या (मुस्लिम, हिंदू) तेज़ी से बढ़ती है, जबकि अधिक आयु वाले समूह (बौद्ध, यहूदी) धीमे।
  3. धार्मिक्सता: यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ईसाइयों और पूर्वी एशिया में बौद्धों का धर्म छोड़ना नन्स की वृद्धि का कारण है। भारत में धार्मिक्सता कम है।
  4. प्रवास: हिंदुओं और मुस्लिमों का मध्य-पूर्व और उत्तरी अमेरिका में प्रवास उनकी क्षेत्रीय वृद्धि को बढ़ावा देता है।

भविष्य की तस्वीर

प्यू रिसर्च की भविष्यवाणी के अनुसार, 2050 तक मुस्लिम (2.8 अरब) और ईसाई (2.9 अरब) की संख्या लगभग बराबर हो सकती है। हिंदू 1.4 अरब तक पहुँचेंगे, लेकिन उनकी वैश्विक हिस्सेदारी 14.9% पर स्थिर रहेगी। भारत में मुस्लिम आबादी 31.1 करोड़ तक पहुँच सकती है, जो दुनिया में सबसे बड़ी होगी। बौद्ध और नन्स की वृद्धि सीमित रहेगी।

जनसांख्यिकी में हो सकता है बड़ा बदलाव

यह धार्मिक बदलाव न केवल जनसांख्यिकी, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक परिदृश्य को भी प्रभावित कर रहे हैं। भारत जैसे देश में, जहाँ धार्मिक विविधता और सहिष्णुता गहरी जड़ें रखती है, इन बदलावों को समझना और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना ज़रूरी है। मुस्लिम आबादी की तेज़ वृद्धि और ईसाइयों की स्थिरता वैश्विक स्तर पर नई चुनौतियाँ और अवसर ला सकती है। क्या ये बदलाव सामंजस्य बढ़ाएँगे या नई बहसें छेड़ेंगे, यह समय बताएगा।

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