‘भारत माता’ धार्मिक प्रतीक कैसे? केरल हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार से पूछा सवाल, निलंबन पर मचा बवाल

Kerala High Court on Bharat Mata: केरल हाईकोर्ट ने केरल विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के.एस. अनिल कुमार से पूछा कि ‘भारत माता’ का चित्र धार्मिक प्रतीक कैसे हो सकता है और इसके कारण कानून-व्यवस्था को खतरा क्यों माना गया? अनिल कुमार ने इसी चित्र के कारण राज्यपाल का कार्यक्रम रद्द किया था, जिसके चलते उन्हें निलंबित कर दिया गया।

Samvadika Desk
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Highlights
  • केरल हाईकोर्ट का सवाल: भारत माता का चित्र धार्मिक प्रतीक कैसे?
  • केरल विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के निलंबन पर कोर्ट में सुनवाई!
  • कोर्ट ने पूछा: भारत माता चित्र से कानून-व्यवस्था को खतरा कैसे?

तिरुवनंतपुरम, केरल: केरल हाईकोर्ट ने एक अहम मामले में केरल विश्वविद्यालय के निलंबित रजिस्ट्रार के.एस. अनिल कुमार से कड़े सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने पूछा कि भारत माता का चित्र धार्मिक प्रतीक कैसे हो सकता है और इसे प्रदर्शित करने से कानून-व्यवस्था की समस्या कैसे उत्पन्न हो सकती है? यह सवाल अनिल कुमार की उस याचिका की सुनवाई के दौरान उठा, जिसमें उन्होंने अपने निलंबन को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति एन. नागरेश ने इस मामले में गंभीर टिप्पणियाँ करते हुए कई बिंदुओं पर स्पष्टीकरण माँगा। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

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क्यों हुआ रजिस्ट्रार का निलंबन?

केरल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. मोहनन कुन्नुमल ने 2 जुलाई 2025 को रजिस्ट्रार के.एस. अनिल कुमार को निलंबित कर दिया था। निलंबन का कारण था एक निजी कार्यक्रम को रद्द करने का नोटिस, जिसमें राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर सीनेट हॉल में शामिल होने वाले थे। इस कार्यक्रम में भारत माता का चित्र और भगवा ध्वज प्रदर्शित किया गया था। अनिल कुमार ने दावा किया कि यह चित्र एक धार्मिक प्रतीक था, जिसके प्रदर्शन से विश्वविद्यालय परिसर में तनाव पैदा हो सकता था।

हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने इस निलंबन पर सवाल उठाते हुए अनिल कुमार से पूछा, “भारत माता का चित्र धार्मिक प्रतीक कैसे है? यह भड़काऊ तस्वीर क्या थी, और इससे केरल में कौन सी कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होने वाली थी?” कोर्ट ने उनकी अंतरिम याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने निलंबन पर रोक लगाने की माँग की थी।

छात्र संगठनों के बीच झड़प

अनिल कुमार ने अपनी याचिका में बताया कि भारत माता के चित्र को लेकर विश्वविद्यालय में माकपा की छात्र शाखा एसएफआई (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) और भाजपा की छात्र शाखा एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के बीच तीखी झड़प हुई थी। विश्वविद्यालय के सुरक्षा अधिकारी ने उन्हें सूचित किया था कि सीनेट हॉल में एक धार्मिक प्रतीक प्रदर्शित किया गया है, जिसके कारण माहौल बिगड़ सकता है। इसके आधार पर अनिल कुमार ने कार्यक्रम रद्द करने का नोटिस जारी किया था।

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उन्होंने यह भी दावा किया कि कुलपति केवल आपातकालीन स्थिति में ही रजिस्ट्रार को निलंबित कर सकते हैं, और यह निलंबन गलत था। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या राज्यपाल जैसे गणमान्य व्यक्ति के शामिल होने वाले कार्यक्रम को इस तरह रद्द करना उचित था।

कोर्ट की टिप्पणी और सवाल

न्यायमूर्ति एन. नागरेश ने सुनवाई के दौरान साफ कहा कि इस मामले में असली समस्या अभी तक स्पष्ट नहीं है। कोर्ट ने अनिल कुमार से पूछा कि भारत माता का चित्र किस तरह धार्मिक या भड़काऊ हो सकता है, और इसे प्रदर्शित करने से क्या कोई गंभीर कानून-व्यवस्था की स्थिति बनने वाली थी। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि कुलपति तब निलंबन का आदेश दे सकते हैं, जब विश्वविद्यालय का सिंडिकेट सत्र में न हो, लेकिन इस आदेश को सीनेट की मंजूरी लेनी होगी।

कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि वे यह स्पष्ट करें कि क्या वाकई कोई बड़ी कानून-व्यवस्था की समस्या थी। साथ ही, अनिल कुमार से विस्तृत जवाबी हलफनामा माँगा गया। इस मामले की अगली सुनवाई 7 जुलाई 2025 को होगी।

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सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ

यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। भारत माता का चित्र भारत में राष्ट्रीयता और देशभक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इसे धार्मिक प्रतीक बताकर रद्द किए गए कार्यक्रम ने कई सवाल खड़े किए हैं। एसएफआई और एबीवीपी जैसे छात्र संगठनों के बीच टकराव ने इस मुद्दे को और तूल दे दिया है।

सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर बहस छिड़ी हुई है। लोगों का मानना है कि, “भारत माता का चित्र धार्मिक कैसे हो सकता है? यह तो देशभक्ति का प्रतीक है।

विश्वविद्यालय और राज्यपाल का रुख

केरल विश्वविद्यालय ने इस मामले में अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन कुलपति के निलंबन के फैसले से साफ है कि वे इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं। वहीं, राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, जो विश्वविद्यालय के चांसलर भी हैं, इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे। उनके शामिल होने वाले आयोजन को रद्द करना भी इस विवाद का एक बड़ा कारण बना।

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यह मामला क्यों अहम?

यह मामला कई कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला, यह भारत माता जैसे प्रतीक को धार्मिक या भड़काऊ मानने की परिभाषा पर सवाल उठाता है। दूसरा, यह विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र संगठनों के बीच बढ़ते राजनीतिक टकराव को उजागर करता है। तीसरा, यह कुलपति और रजिस्ट्रार के बीच अधिकारों की सीमा और जवाबदेही पर बहस छेड़ता है।

केरल हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ इस मामले में निष्पक्ष जाँच और तथ्यों की गहराई से पड़ताल की जरूरत को दर्शाती हैं। यह मामला न केवल विश्वविद्यालय के लिए, बल्कि पूरे देश में राष्ट्रीय प्रतीकों और उनकी व्याख्या को लेकर एक नई बहस शुरू कर सकता है।

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अगली सुनवाई 7 जुलाई को

कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 7 जुलाई 2025 को निर्धारित की है। तब तक पुलिस को यह स्पष्ट करना होगा कि क्या भारत माता के चित्र से कोई गंभीर कानून-व्यवस्था की समस्या थी। साथ ही, अनिल कुमार को अपने निलंबन और निर्णय के पक्ष में विस्तृत हलफनामा देना होगा। इस सुनवाई के नतीजे न केवल रजिस्ट्रार के भविष्य को तय करेंगे, बल्कि यह भी स्पष्ट करेंगे कि राष्ट्रीय प्रतीकों को लेकर ऐसी परिस्थितियों में क्या कदम उठाए जाने चाहिए।

( ये जानकारी विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है)

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