ऑपरेशन सिंदूर: जनरल मुनीर की सेना दोहरे मोर्चे पर फंसी, क्या टूट जाएगा पाकिस्तान?

Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने PoK और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिससे जनरल आसिम मुनीर की चुनौतियाँ कई गुना बढ़ गई हैं। एक तरफ भारत की सैन्य सख्ती, तो दूसरी तरफ बलूच और TTP विद्रोहों ने पाकिस्तान को अस्थिरता की कगार पर ला खड़ा किया है। देश के भीतर भी धार्मिक और राजनीतिक विरोध तेज हो गया है।

Samvadika Desk
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बुरे फंसे भारत को धमकी देने वाले आसिम मुनीर। (इमेज - संवादिका)
Highlights
  • ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान की नींव हिली, PoK में आतंकी अड्डे तबाह
  • जनरल मुनीर की चुप्पी सवालों के घेरे में, पाक सेना की रणनीति असमंजस में
  • पाकिस्तान में आपातकाल, पंजाब प्रांत में सेना की तैनाती!
  • मसूद अजहर के परिजनों की मौत से जैश को बड़ा झटका!
  • विश्लेषकों की चेतावनी: पाकिस्तान में दो हिस्सों में बंटने जैसे हालात!

Operation Sindoor: भारत ने ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के तहत पहलगाम आतंकी हमले (Pahalgam Terror Attack) का जवाब देकर पाकिस्तान को गहरे संकट में डाल दिया। इस सैन्य कार्रवाई में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के नौ आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया, जिसने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर (General Asim Munir) को चौतरफा मुश्किल में ला खड़ा किया। “मुल्ला जनरल” के रूप में कुख्यात मुनीर अब दोहरे मोर्चे पर जूझ रहे हैं—एक तरफ भारत की सटीक सैन्य ताकत, दूसरी तरफ खैबर-पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) और बलूचिस्तान (Balochistan) में बढ़ता आंतरिक विद्रोह। क्या उनकी सेना इस दोहरे दबाव को झेल पाएगी, या पाकिस्तान टूटने की कगार पर पहुँच गया है?

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ऑपरेशन सिंदूर: भारत का करारा जवाब

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले में 26 लोग, ज्यादातर हिन्दू पर्यटक मारे गए थे। इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed) ने ली, और खुफिया सूत्रों ने पाकिस्तानी सेना की संलिप्तता का दावा किया। भारत ने 7 मई 2025 को ऑपरेशन सिंदूर शुरू कर जवाब दिया, जिसमें बहावलपुर (Bahawalpur), मुरिदके (Muridke), और सियालकोट (Sialkot) में जैश और लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) के आतंकी अड्डों को ध्वस्त कर दिया गया। इस हमले में मसूद अजहर (Masood Azhar) के परिवार के 10 सदस्य और चार सहयोगी मारे गए, जिसने जैश के ढांचे को गहरा झटका दिया।

रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) ने ऑपरेशन सिंदूर को आतंकवाद के खिलाफ सटीक और संयमित कार्रवाई (Precise and Restrained Action) बताया। लेकिन पाकिस्तान में इस हमले ने हड़कंप मचा दिया। पंजाब प्रांत में आपातकाल (Emergency) लागू कर दिया गया, और पाकिस्तानी नेतृत्व की चुप्पी उनकी घबराहट को उजागर कर रही है।

जनरल मुनीर की चुप्पी: रणनीति या बेबसी?

पहलगाम हमले के बाद जनरल मुनीर ने भारत को करारा जवाब (Strong Retaliation) देने की धमकी दी थी। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के कई घंटे बाद भी उनकी ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह चुप्पी उनकी रणनीतिक मजबूरी (Strategic Constraint) को दर्शाती है। पाकिस्तानी सेना इस समय खैबर-पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehrik-i-Taliban Pakistan, TTP) के खिलाफ भीषण जंग में उलझी है।

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पेशावर (Peshawar) में तैनात सैनिक टीटीपी के साथ संघर्ष में फंसे हैं, जो दक्षिण की ओर बढ़कर उत्तरी वजीरिस्तान (North Waziristan) और अन्य सीमावर्ती इलाकों में समानांतर शासन (Parallel Governance) चला रहा है। अगर मुनीर नियंत्रण रेखा (Line of Control, LoC) पर सैनिकों की तैनाती बढ़ाते हैं, तो टीटीपी को और ताकत मिल सकती है, जिससे खैबर-पख्तूनख्वा में सेना की पकड़ और कमजोर हो सकती है।

पाकिस्तान की दोहरी जंग: भारत और आंतरिक विद्रोह

ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में अगर मुनीर भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो खैबर-पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में विद्रोह और भड़क सकता है। बलूचिस्तान में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (Balochistan Liberation Army, BLA) जैसे अलगाववादी समूहों ने सेना पर हमले तेज कर दिए हैं। पिछले महीने लक्की मरवत (Lakki Marwat) की खदानों से पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग (Pakistan Atomic Energy Commission) के 18 कर्मचारियों को अगवा कर लिया गया था, जो टीटीपी की बढ़ती ताकत को दर्शाता है।

खैबर-पख्तूनख्वा में टीटीपी ने कई इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। अगर सेना वहाँ से हटती है, तो इन क्षेत्रों में वापसी लगभग असंभव हो सकती है। एक रक्षा विशेषज्ञ ने कहा, “मुनीर के लिए यह आगे कुआँ, पीछे खाई (Between a Rock and a Hard Place) वाली स्थिति है। भारत के खिलाफ कार्रवाई उनकी आंतरिक सुरक्षा को और कमजोर कर सकती है।”

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आंतरिक विरोध: मुल्ला जनरल की साख पर सवाल

पाकिस्तान के भीतर मुनीर की कट्टरपंथी छवि (Radical Image) के खिलाफ विरोध बढ़ रहा है। इस्लामाबाद के प्रभावशाली मौलवी अब्दुल अजीज गाजी (Abdul Aziz Ghazi) ने हाल ही में पाकिस्तान को गैर-इस्लामी देश (Non-Islamic State) घोषित कर दिया और अपने अनुयायियों से कहा कि भारत के खिलाफ सेना का पक्ष लेना इस्लामी कानून के खिलाफ है। यह बयान मुनीर के लिए बड़ा झटका है।

सोशल मीडिया पर भी उनकी आलोचना तेज है। कई लोग पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) की रिहाई की माँग कर रहे हैं, और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (Pakistan Tehreek-e-Insaf, PTI) ने मुनीर की नीतियों की खुलकर आलोचना की है। खैबर-पख्तूनख्वा के एक मौलाना ने दावा किया, “अगर भारत हमला करता है, तो हम पश्तून पाकिस्तानी सेना के बजाय भारत का साथ देंगे।” यह बयान देश के भीतर गहरे विभाजन को उजागर करता है।

कभी ना भूलने वाला: पहलगाम आतंकी हमला

पहलगाम का आतंकी हमला, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद ने 26 लोगों की हत्या की थी, पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद (Pakistan-Sponsored Terrorism) का हिस्सा माना गया। इस हमले ने भारत में गुस्से की लहर पैदा की, और सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाए। ऑपरेशन सिंदूर इस जवाबी कार्रवाई का हिस्सा था, जिसने न केवल आतंकी ढांचों को नष्ट किया, बल्कि पाकिस्तानी सेना को रणनीतिक रूप से कमजोर किया।

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पाकिस्तान का भविष्य: टूटने की आशंका?

जनरल मुनीर के सामने अब कठिन विकल्प हैं। अगर वह भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो खैबर-पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में विद्रोह और भड़क सकता है। अगर वह चुप रहते हैं, तो उनकी साख और सेना की विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे। हाल ही में 600 सैनिकों और अधिकारियों के इस्तीफे ने सेना के मनोबल (Morale) पर गहरा असर डाला है।

विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान इस दोहरे दबाव को झेलने में सक्षम नहीं है। बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा में बढ़ती अशांति 1971 जैसे हालात (1971-Like Situation) पैदा कर सकती है, जब बांग्लादेश का गठन हुआ था। भारत ने अपनी रणनीति साफ कर दी है—आतंकवाद के खिलाफ सख्ती (Zero Tolerance to Terrorism), लेकिन युद्ध से बचाव। बैक-चैनल कूटनीति (Back-Channel Diplomacy) के जरिए तनाव कम करने की कोशिशें भी चल रही हैं।

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अब पाकिस्तान को सोचने की जरूरत

ऑपरेशन सिंदूर ने जनरल आसिम मुनीर को सैन्य, राजनीतिक, और सामाजिक मोर्चों पर कमजोर कर दिया है। पाकिस्तान के लिए यह समय अपनी आतंकवाद समर्थक नीतियों (Terror-Supporting Policies) पर पुनर्विचार करने का है, वरना दोहरे मोर्चे की जंग उसे अस्थिरता (Instability) की ओर ले जा सकती है। भारत की कार्रवाइयाँ साफ संदेश दे रही हैं—आतंकवाद का कोई भी समर्थक बख्शा नहीं जाएगा।

(ये जानकारी विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है।)

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